Monday, September 15, 2025
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मेरी कविता : राजनीति ही सबकी चाहत है

रेस्टौरेंट होटल हैं खुल गये,
जगह जगह हैं माल बन रहे,
अस्पतालों की लाइन लगी है,
कुकुरमुत्ते की भाँति बढ़ रहे ।

नहीं कहीं पार्किंग की व्यवस्था,
नहीं कहीं अग्निशमन की सुरक्षा,
कोई नहीं नियम क़ानून मानता,
जगह जगह व्यापक अव्यवस्था।

दूर देश की बातें करके,
सबको भरमाये रहते हो,
भारत विकसित कैसे होगा,
बस केवल वादे करते हो।

यूपी की सड़कें दो वर्षों में
अमेरिका से भी सुंदर हों,
भगवान भरोसे ही शायद
वह भी ऐसा कहते हों ।

सड़कें तो बनायी जाती हैं,
कोई तकनीकि नहीं होती,
राम भरोसे अब भारत है,
जीवन मृत्यु अनिश्चित है।

पशु पक्षी आवारा फिरते,
बच्चे बूढ़े हैं सब उनसे डरते,
राम कृष्ण की बातें करके,
विश्व गुरू हर दिन हैं बनते।

रहने दो कुछ ख़ामियाँ यहाँ भी,
ज़्यादा सम्पूर्णता भी ठीक नहीं,
सम्पूर्ण संतुष्टि और फिर सुख,
जीवन का दे पाते आनन्द नहीं।

शासक शासित सभी व्यस्त हैं,
स्वार्थ लिप्त हर एक शख़्स है,
आदित्य विकास सब कैसे हो,
राजनीति ही सबकी चाहत है।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’

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