November 22, 2024

राष्ट्र की परम्परा

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चीन से तिब्बत की आजादी के अभियान का हिस्सा बनें युवा: आरपीएन

  • तिब्बत जागरूकता गोष्ठी
  • तिब्बत में चीन ने त्रासदी की इंतेहा कर दी : थुपिन रिगजिन
  • चीन के कब्जे से भारत की 40 हजार वर्ग किमी की मुक्ति भी अनिवार्य: शैलेन्द्र

पडरौना/कुशीनगर (राष्ट्र की परम्परा)। भारत सरकार के पूर्व गृह राज्य मंत्री व भाजप नेता कुंवर आरपीएन सिंह ने कहा कि तिब्बत का भारत गुरु ही नहीं, भाई भी है। इस दायित्व का निर्वहन हमारा धर्म भी है। तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा के 1959 में भारत मे शरण लेने के चीन ने इन्हें वापस नहीं सौंपने पर 1962 में हमला कर भारत के बड़े भूभाग को हड़प लिया है। पिछले 60 वर्षों से तिब्बत में रह रहे लोगों के साथ क्या अमानवीय कृत्य हो रहा है, यह देश के युवाओं को भी जानना चाहिए। देश के युवाओं को देश के जिस कोने में जहाँ भी तिब्बत को चीन से आजाद कराने के लिए अभियान चलाया जाए, उसका हिस्सा बनना चाहिए।
उक्त विचार बुधवार को उदितनारायण स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पुस्तकालय सभागार में तिब्बत जागरूकता विषयक गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि युवाओं को सोशल मीडिया के प्लेटफार्म को चीन से तिब्बत को आजाद कराने का अभियान चलाना चाहिए। अपने विचार लिखकर यूएनओ व चीन को भेजना चाहिए। भारत मे निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रतिनिधियों से भी इस मुद्दे पर अधिक जानकारी लेने की जरूरत है। नई दिल्ली तिब्बत की निर्वासित सरकार के कोआर्डिनेटर थुपिन रिगजिन ने भारत मे रह रहे तिब्बतियों के रोजगार, शिक्षा व धर्म को लेकर जो सहूलियतें दी है, उसकी विशद चर्चा करते हुए बताया कि तिब्बत का धर्म, भाषा, लिपि व संस्कृति भारत से सांगोपांग जुड़ी है। साथ चीन ने सैनिकों के बल पर तिब्बत पर कब्जा कर लिया है। नतीजतन हमारे गुरु दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी। चीन पिछले 64 वर्षों से तिब्बत में रह रहे लोगों के साथ अमानवीय अत्याचार कर रहा है। धार्मिक स्थलों को ध्वस्त कर रहा है। बच्चों को जबरिया चीनी भाषा की शिक्षा दे रहा है। पिछले 10 वर्षों में 160 तिब्बती आत्मदाह कर चुके हैं। हमारी दो ही मांग है कि तिब्बत की आजादी और हमारे गुरु दलाई लामा और तिब्बतियों को तिब्बत सौंपा जाएं।
विशिष्ट अतिथि भारत तिब्बत समन्वय संघ के गोरक्ष प्रांत के उपाध्यक्ष व हनुमान इंटर कालेज के प्रधानाचार्य शैलेन्द्र दत्त शुक्ल ने कहा दलाई लामा को शरण देने से बौखलाए चीन ने 1962 में हमला कर भारत के 40 हजार वर्ग किमी भूभाग को कब्जा कर लिया। देश की संसद में 1964 में सभी दलों के सांसदों ने यह संकल्प लिया कि जब तक चीन अधिकृत भारत भूभाग के एक-एक इंच जमीन को वापस नहीं ले लेते हम चैन से नहीं बैठेंगे। इतना ही हिंदुओं के डिवॉन के महादेव का मूल स्थान कैलाश मानसरोवर तिब्बत में है, जो चीन के आधिपत्य में है। इस स्थान को भी मुक्त कराना हमारा दायित्व है। इसके लिए राष्ट्रव्यापी अभियान चल रहा है।
इसी क्रम में आगामी दिसंबर में उड़ीसा के तेजपुर राष्ट्रीय बैठक प्रस्तावित है। देश मे बड़े पैमाने पर जनजागरूकता अभियान तेज करने की जरूरत है।
तिब्बत मुक्ति अभियान में जुड़े सुरेंद्र कुमार ने भी तिब्बत को चीन के कब्जे मुक्त कराने के अभियान का हिस्सा बनने का आह्वान किया।
गोष्ठी की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. ममता मणि ने की। इस दौरान भारत तिब्बत के रिश्तों और चीन की त्रासदी से जुड़े चित्रों की प्रदर्शनी का भी अतिथियों ने अवलोकन किया।