बहराइच (राष्ट्र की परम्परा)। संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र के एग्रोनॉमी अनुभाग द्वारा खरीफ फसलों में फसल अवशेष प्रबंधन विषय पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया। कार्यक्रम का आयोजन केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. शशि कान्त यादव के अध्यक्षता में संपन्न हुआ, जिसमें केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ शैलेंद्र सिंह ने कृषकों को अपने खेत फसल अवशेष प्रबन्धन किए जाने के विषय में विस्तृत रूप से चर्चा करते हुए अवगत करवाया कि फसल अवशेष को जलाने से वातावरण प्रदूषित होता है, मृदा में पोषक तत्वों की अत्यधिक क्षति के साथ-साथ मिट्टी की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणो पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
जिससे भूमि अपनी उर्वरा शक्ति पूर्ण रूप से खोने की तरफ अग्रसर हो जाती है, तथा मृदा में फसलों के अवशेष जलाये जाने से मृदा के तापमान में वृद्धि होती है।
जिसके कारण मृदा में रहने वाले लाभदायक सूक्ष्म जीव भी पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं, एवं मृदा में पोषक तत्व की मात्रा नष्ट हो जाती है, इतना ही नहीं फसलों को जलाए जाने से उसमें निकलने वाली गैसों के कारण सामान्य वायु की गुणवत्ता में कमी आती है, आंखों में जलन एवं त्वचा रोग तथा सूक्ष्म कणों के कारण हृदय एवं फेफड़ों की बीमारी भी होने की संभावना पूर्णता बनी रहती है।
कार्यक्रम का समापन के अवसर पर केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ शशिकांत यादव के द्वारा दलहनी फसलों के बीज शोधन एवं फसल प्रबंधन के विषय में विशेष रूप से प्रकाश डालते हुए तकनीकी जानकारी कृषकों को उपलब्ध कराई किया गयी। प्रशिक्षण के उपरांत प्रशिक्षण में प्रतिभा करने वाले प्रशिक्षणार्थियों को वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष के द्वारा सरसों एवं चने का बीज निशुल्क वितरित किया गया।
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