November 21, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

अहिंसा ही हमारा दर्पण है

✍️ डॉ.विक्रम चौरसिया

हिंसा किसी भी इंसान, समाज व राष्ट्र के लिए हितकर हो ही नही सकता, इसलिए अहिंसा ही हम सभी का धर्म होना चाहिए। जब हम अहिंसा की बात करते हैं तो हमारे दिमाग में एक नाम आता गांधी जो की सत्य व अहिंसा के पुजारी थे जिनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं,वे अपने जीवन का हर संघर्ष , सत्य और अहिंसा को आधार बनाकर ही जीते थे।महात्मा गांधी ने अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिए , लेकिन उनकी आजादी की लड़ाई का तरीका एकदम ही अलग था। वह बिना किसी को चोट पहुंचाए, बिना हिंसा के अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने में यकीन रखते थे, उन्हें अहिंसात्मक आंदोलन के लिए जाना जाता है। अहिंसात्मक व्यवहार के कारण वैश्विक तौर पर गांधी जी को सम्मान मिला , इसी सम्मान को व्यक्त करने के लिए 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मना रहे है। यही सच्चाई है मैं भी अहिंसा में ही शत प्रतिशत विश्वास करता हूं ,अहिंसा ही हम इंसानों का सबसे बड़ा धर्म हैं,सामान्य अर्थ में ‘हिंसा नहीं करना’ ही अहिंसा है, धर्म ग्रन्थों के अनुसार व्यापक अर्थ में इसका मतलब ‘किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन व वाणी से कोई नुकसान नहीं पहुँचाना ही ‘अहिंसा’ है। ‘जैन’ एवं ‘हिन्दू धर्म में अहिंसा को बहुत महत्त्व दिया गया है। जैन धर्म का तो मूल मंत्र ही ‘अहिंसा परमो धर्मः’ अर्थात अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है। इसके अलावा विश्व में भी अहिंसा का विचार रहा ही है।
विश्व के किसी भी समस्या का समाधान हिंसा से नहीं हो सकता, हिंसा हमेशा प्रतिहिंसा को जन्म देती है, यह कभी नहीं रुकने वाला अंतहीन सिलसिला है। इसलिए सभी समस्याओं का समाधान बातचीत से, प्रेम और सौहार्द से ही हो सकता है। हम एक हिंसक समाज का निर्माण नहीं कर सकते, आँख के बदले आँख के सिद्धांत पर चले तो पूरी दुनियां ही अंधी हो जाएगी, हम पुरी दुनियां को अपना परिवार मानते है यानी की
वसुधैव कुटुंबकम् के राह पर चलने वाले है,इसलिए आज ही आप भी शपथ ले की हम अपने जीवन में हिंसा को नहीं बल्कि अहिंसा को बढ़ावा देंगे।अगर प्रत्येक मनुष्य ‘अहिंसा’ को मजबूती से अपने जीवन का अंग बना ले तो दुनिया में अपराध, नफरत, स्वार्थ, हिंसा, चोरी जैसी घटनाएं पूर्णतः खत्म हो जाएगी। मनुष्य प्रकृति से उतना ही लेगा जितनी उसको जरूरत है,प्रकृति का अत्यधिक दोहन करना, उससे जरूरत से ज्यादा लेना भी हिंसा है। अगर हम ऐसा करेंगे तो आनेवाली पीढ़ियों के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। इसलिए प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग जरूरत के अनुसार करना चाहिए।