लखनऊ (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय समीकरण एक बार फिर चर्चा में हैं। विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान लखनऊ में हुई बीजेपी के ब्राह्मण विधायकों की बैठक के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है। यह बैठक 22 दिसंबर की शाम कुशीनगर से बीजेपी विधायक पंचानंद पाठक के लखनऊ स्थित आवास पर हुई, जिसे औपचारिक रूप से पारिवारिक सह-भोज बताया गया, लेकिन इसके राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं।
यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब हाल ही में ठाकुर समुदाय से जुड़े बीजेपी विधायकों की भी बैठक हो चुकी है और इसके साथ ही कुर्मी समाज से आने वाले पंकज चौधरी को यूपी बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद ब्राह्मण समाज में असंतोष की चर्चाएं सामने आई हैं। ऐसे में इस जुटान को 2027 विधानसभा चुनाव की तैयारियों से जोड़कर देखा जा रहा है।
ब्राह्मण विधायकों की बैठक में क्या हुआ?
सूत्रों के अनुसार इस बैठक में करीब 45–50 विधायक और एमएलसी शामिल हुए। यूपी विधानसभा में कुल 52 ब्राह्मण विधायक हैं, जिनमें से 46 भाजपा से जुड़े हैं। बैठक में मिर्जापुर विधायक रत्नाकर मिश्रा और एमएलसी उमेश द्विवेदी की भूमिका अहम बताई जा रही है।
खास बात यह रही कि इस बैठक में बीजेपी के अलावा अन्य दलों के ब्राह्मण विधायक भी मौजूद थे। भोजन के रूप में लिट्टी-चोखा और मंगलवार व्रत का फलाहार परोसा गया। वहीं, नृपेन्द्र मिश्रा के पुत्र और एमएलसी साकेत मिश्रा की मौजूदगी ने बैठक को और चर्चा में ला दिया।
ब्राह्मण वोटबैंक: आंकड़े क्या कहते हैं?
उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण मतदाता 8 से 10 फीसदी माने जाते हैं। प्रदेश की 110 से अधिक विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। करीब 12–15 जिले ऐसे हैं जहां ब्राह्मण आबादी 15% से अधिक है, जिनमें—
बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर और प्रयागराज प्रमुख हैं।
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CSDS-लोकनीति के आंकड़ों के मुताबिक—
• 2022 विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों का 89% वोट BJP को मिला
समाजवादी पार्टी को 6%, कांग्रेस को 1% समर्थन मिला
• 2017 में भी भाजपा को 83% ब्राह्मण वोट मिले थे
ये आंकड़े साफ करते हैं कि ब्राह्मण वोटबैंक बीजेपी के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम है और इसकी नाराजगी पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है।
एक बैठक, कई राजनीतिक संकेत
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक यह बैठक केवल सामाजिक चर्चा तक सीमित नहीं थी। माना जा रहा है कि मौजूदा जातीय संतुलन और संगठनात्मक फैसलों से ब्राह्मण समाज खुद को हाशिये पर महसूस कर रहा है। हालांकि बैठक में शामिल विधायकों का कहना है कि यह जुटान पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव और सामाजिक मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए थी, न कि किसी नाराजगी के प्रदर्शन के लिए।
फिर भी, 2027 के विधानसभा चुनाव, प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति और लगातार हो रही जातीय बैठकों के बीच यह ब्राह्मण बैठक आने वाले दिनों में यूपी की राजनीति में नई रणनीति और समीकरणों की ओर इशारा कर रही है।
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