जयंती विशेष- नवनीत मिश्र
आज, 13 दिसंबर को मनाई जाने वाली मनोहर परिकर की जयंती केवल एक पूर्व मुख्यमंत्री या पूर्व रक्षा मंत्री को याद करने का अवसर नहीं है, बल्कि उस राजनीतिक संस्कृति पर विचार करने का दिन है, जिसमें सादगी, स्पष्टता और राष्ट्रसेवा सर्वोपरि थीं। वे भारतीय राजनीति के उन विरले व्यक्तित्वों में रहे, जिनकी पहचान पद से नहीं, बल्कि आचरण से बनी। गोवा जैसे छोटे राज्य से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी अलग छाप छोड़ना उनके व्यक्तित्व की गहराई और दृष्टि का प्रमाण है।
मनोहर परिकर की राजनीति का मूल स्वर ‘व्यवहारिक ईमानदारी’ था। उन्होंने सत्ता को विशेषाधिकार नहीं, बल्कि उत्तरदायित्व माना। मुख्यमंत्री रहते हुए उनका सामान्य जीवन, साधारण पहनावा और आम नागरिकों जैसा व्यवहार यह संदेश देता था कि लोकतंत्र में नेता और जनता के बीच दूरी नहीं होनी चाहिए। उनकी सादगी किसी रणनीति का हिस्सा नहीं, बल्कि उनके स्वभाव की स्वाभाविक अभिव्यक्ति थी।
रक्षा मंत्री के रूप में परिकर का कार्यकाल भारतीय सुरक्षा नीति में आत्मविश्वास और स्पष्टता का प्रतीक रहा। उन्होंने सैनिकों की जरूरतों, रक्षा तैयारियों और स्वदेशी उत्पादन को प्राथमिकता दी। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े निर्णयों में उन्होंने यह स्थापित किया कि निर्णायक नेतृत्व का अर्थ आक्रामक भाषा नहीं, बल्कि ठोस नीति और स्पष्ट सोच है। उनका दृष्टिकोण शांत, लेकिन दृढ़ था।
आईआईटी से शिक्षित होने के बावजूद मनोहर परिकर ने कभी बौद्धिक दंभ नहीं दिखाया। उनकी तकनीकी समझ प्रशासनिक निर्णयों में दिखाई देती थी, जिससे योजनाओं की व्यवहारिकता और प्रभावशीलता बढ़ी। वे फाइलों और नीतियों को गहराई से समझते थे और सवाल पूछने से कभी नहीं हिचकते थे। यही गुण उन्हें एक संवेदनशील और सक्षम प्रशासक बनाता है।
उनकी नेतृत्व शैली संवाद और सहभागिता पर आधारित थी। अधिकारी हों या जनप्रतिनिधि, वे सभी को सुनते थे और जिम्मेदारी तय करते थे। सत्ता में रहते हुए भी वे जमीन से जुड़े रहे और आम जन की समस्याओं को प्राथमिकता देते रहे। विरोधी भी उनके व्यक्तिगत जीवन और सार्वजनिक आचरण की ईमानदारी को स्वीकार करते थे।
बीमारी के लंबे संघर्ष के बावजूद सार्वजनिक जीवन के प्रति उनका समर्पण यह दर्शाता है कि सेवा उनके लिए पद से ऊपर थी। उन्होंने व्यक्तिगत पीड़ा को कभी राजनीतिक सहानुभूति का माध्यम नहीं बनाया। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि सिद्धांतों पर टिके रहकर भी प्रभावी राजनीति की जा सकती है।
आज जब राजनीति में दिखावा, अवसरवाद और तात्कालिक लाभ हावी हो रहे हैं, मनोहर परिकर की जयंती हमें याद दिलाती है कि सच्ची सेवा और नैतिक नेतृत्व ही राष्ट्र की स्थायी ताकत हैं। उनका जीवन एक मार्गदर्शन है, जो नए नेताओं और नागरिकों दोनों के लिए प्रेरणा और नैतिक कसौटी का काम करता है। इस जयंती पर उनकी विरासत को याद करना केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के मूल्य को जीवित रखने का संकल्प भी है।
