देवरिया (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)
भारत में हर साल बाढ़ और सूखा किसानों की ज़िंदगी को तहस-नहस कर देता है। जानिए कैसे प्राकृतिक आपदाएँ खेती, परिवार और देश की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करती हैं और किसानों को किस तरह की जमीनी चुनौतियों से जूझना पड़ता है।
किसान बनाम प्रकृति: हर मौसम एक नई परीक्षा
भारत में खेती सिर्फ एक व्यवसाय नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की जीवनरेखा है। पर यह जीवनरेखा हर साल बाढ़ और सूखे जैसे प्राकृतिक संकटों में फँस जाती है। कभी आसमान से बरसात नहीं थमती, तो कभी महीनों तक एक बूंद पानी नहीं गिरता। मौसम के इस अस्थिर खेल में सबसे बड़ा नुकसान उसी किसान का होता है जिसकी मेहनत पर देश की थाली भरती है।
बाढ़—जब पानी जीवन नहीं, विनाश बनकर आता है
बाढ़ के समय खेत ऐसे डूब जाते हैं जैसे सालों की मेहनत को किसी ने पल भर में मिटा दिया हो।
धान, गन्ना, सब्ज़ियों जैसी प्रमुख फ़सलें नष्ट हो जाती हैं
पशुधन और गोदामों तक पानी पहुँच जाता है
खेतों की उपजाऊ मिट्टी बह जाती है, जो आने वाले सीजन की उम्मीदें भी छीन लेती है
जो किसान फसल पर निर्भर रहते हैं, उनके लिए बाढ़ सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि भावनात्मक नुकसान भी लेकर आती है—कर्ज़ बढ़ता है, परिवार की चिंता बढ़ती है, और भविष्य अनिश्चित हो जाता है।
सूखा—जब आसमान की खामोशी किसान के दिल की धड़कनें रोक देती है
जहाँ कुछ इलाके बाढ़ में डूबते हैं, वहीं देश के कई हिस्सों में सूखे की मार किसान की कमर तोड़ देती है।
समय पर बारिश न होने से बोआई रुक जाती है
ट्यूबवेल और तालाब सूख जाते हैं
बिजली और डीज़ल पर सिंचाई का खर्च कई गुना बढ़ जाता है
सूखे के दौरान किसान दोहरी मार झेलता है—पानी नहीं, सिंचाई महंगी, फसल कमजोर और बाज़ार में दाम कम।
ये सिर्फ मौसम की समस्या नहीं—ये व्यवस्था की भी कमी है
बाढ़ और सूखे का कारण सिर्फ प्रकृति नहीं, बल्कि कई नीतिगत कमियाँ भी हैं-
खेतों के लिए पर्याप्त जल प्रबंधन का अभाव
नदियों के किनारे निर्माण और अतिक्रमण
बारिश का जल संग्रह नहीं होना
किसानों तक समय पर बीमा और राहत न पहुँच पाना
जब तक ये समस्याएँ दूर नहीं होंगी, तब तक किसान हर साल वही लड़ाई लड़ने को मजबूर रहेगा।
किसानों को क्या चाहिए—सिर्फ मुआवज़ा नहीं, स्थायी समाधान
किसानों का संघर्ष कम होगा जब-
वाटर मैनेजमेंट मजबूत हो
ड्रेनेज सिस्टम सुधरे
फसल बीमा समय पर मिले
किसानों को आधुनिक तकनीक और मौसम की सटीक जानकारी उपलब्ध हो
सूखा-रोधी और बाढ़-रोधी फसलें बड़े स्तर पर बढ़ाई जाएँ
यह सिर्फ किसान का मुद्दा नहीं, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा का सवाल भी है।
किसान का दर्द समझना ही समाधान की पहली सीढ़ी है
बाढ़ और सूखा किसान के लिए सिर्फ प्राकृतिक विपदाएँ नहीं, बल्कि हर साल दोहराई जाने वाली क्रूर परीक्षा हैं।
उनकी लड़ाई को समझना, उन्हें तकनीक, सुरक्षा और स्थायी समाधान देना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। क्योंकि जब किसान सुरक्षित होगा, तभी देश सुरक्षित होगा—और तभी हमारी थाली में अन्न भरेगा।
