Thursday, November 27, 2025
HomeNewsbeatकवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’: राष्ट्र चेतना के अमर गायक

कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’: राष्ट्र चेतना के अमर गायक

*पुनीत मिश्र*

हिंदी कविता के विस्तृत आकाश में शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ का नाम उस ध्रुवतारे की तरह चमकता है, जो दिशा भी दिखाता है और उजाला भी फैलाता है। संवेदनशील कवि, दूरदर्शी शिक्षाविद्, सुसंस्कृत चिंतक और राष्ट्रभावना के समर्थ गीतकार ‘सुमन’ इन चारों रूपों में अपनी पूर्णता के साथ प्रतिष्ठित हैं। पद्मश्री, पद्मभूषण और साहित्य अकादमी पुरस्कार जैसे सम्मान उनके साहित्य-कर्म की सार्वजनिक मान्यता हैं, पर उनका वास्तविक सम्मान उनकी संवेदना, ओज और सकारात्मक जीवनदृष्टि में निहित है। 1915 में उज्जैन में जन्मे ‘सुमन’ बचपन से ही विद्यानुराग, सत्यनिष्ठा और सहज मानवीयता के संस्कारों में पले-बढ़े। अध्ययन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें उच्च शिक्षा की राह दिखाई, और बाद में वे विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति बने। उनके लिए शिक्षा कभी संस्थागत व्यवस्था भर नहीं थी; वह चरित्र-निर्माण, राष्ट्रीय चेतना और संस्कृति-सम्मिलन की साधना थी। कवि ‘सुमन’ का व्यक्तित्व ओज, करुणा और सौंदर्य का अद्भुत समन्वय है। उनकी कविताएँ जीवन के संघर्षों को उजाले में बदल देने वाली प्रेरक ऊर्जा से भरी हैं। उनके प्रसिद्ध गीतों की लय में आत्मविश्वास, कर्मशीलता और राष्ट्र के प्रति समर्पण स्वरूप गूँजते हैं। “मैं समय का शिल्पकार हूँ” जैसे गीत आज भी मनुष्य के भीतर छिपे जुझारू स्वभाव को जगाने वाले मंत्र की तरह हैं। भारतभूमि के प्रति प्रेम और स्वतंत्रता की भावना उनके काव्य में सतत प्रवाहित होती है। वे उन कवियों में हैं जिनके लिए साहित्य का अर्थ केवल सौंदर्यबोध नहीं, बल्कि नागरिक जागरूकता और राष्ट्र-संवेदना को जीवित रखना भी था। दिनकर, पंत और निराला की पंक्ति में ‘सुमन’ इसलिए अलग पहचान रखते हैं क्योंकि उनकी कविता में राष्ट्रीयता किसी नारों से नहीं, बल्कि जीवन की सहज अनुभूति से जन्म लेती है। साहित्यकार के रूप में उन्होंने जिस गहनता से मनुष्य और समाज को देखा, उसी गहराई से वे प्रकृति और संस्कृति को भी समझते थे। उनकी रचनाओं में भारतीय लोकजीवन की खुशबू है, खेतों की हरियाली, नदी की शीतलता, गाँवों की सादगी और श्रमजीवी मनुष्य की धड़कन। यह लोक-निकटता ही उन्हें पाठकों के दिल तक पहुँचाती है। 27 नवंबर 2002 को उनके जीवन की लौ शांत हुई, पर उनका साहित्य आज भी वैसा ही प्राणवान है जैसा रचना के समय था। उनकी पंक्तियाँ, उनके विचार और उनकी सांस्कृतिक दृष्टि आज भी नई पीढ़ी के लिए उतनी ही प्रेरक हैं। वे हमें बताते हैं कि कविता केवल भावों की नहीं, बल्कि जिम्मेदारियों की भी भाषा होती है। शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ हिंदी साहित्य की उस विरासत का नाम हैं, जो मनुष्य को उसकी जड़ों से जोड़ती है, उसे कर्मपथ पर अग्रसर करती है और राष्ट्र-गौरव को आत्मगौरव में रूपांतरित करती है। वे साहित्य के प्रहरी भी थे और जीवन के शिक्षक भी। उनका संवेदनशील और तेजस्वी रचनाकर्म यह संदेश देता है कि सृजन का सर्वोच्च लक्ष्य मानवता की सेवा, संस्कृति का संरक्षण और राष्ट्र का उत्थान है। अपने व्यक्तित्व, कृतित्व और काव्य-तेज के कारण ‘सुमन’ आज भी हिंदी साहित्य में सुमन की तरह ही सुगंधित, प्रेरक और सदैव जीवित हैं।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments