Wednesday, October 15, 2025
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रबी की फसलों में गेहूँ का सर्वोच्च स्थान है: डॉ. के.एम. सिंह

बहराइच (राष्ट्र की परम्परा)। अच्छा उपज और आय देने वाली इस फसल गेहूं में रोगों एवं कीटों के कारण प्रतिवर्ष 10 से 20 प्रतिशत हानि होती है जिसके कारण ना सिर्फ फसल की पैदावार बल्कि गुणवत्ता पर भी विपरित प्रभाव पड़ता है। इन कीट और रोग की समय रहते पहचान करके नियंत्रण करने से किसान अच्छा और गुणवत्तायुक्त उत्पादन ले सकता हैं। कृषि विज्ञान केन्द्र नानपारा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. के. एम. सिंह ने बताया कि गेहूँ में प्राय: चौड़ी एवं संकरी पत्ती वाले खरपतवारों जैसे गुल्ली डंडा, चटरी-चटरी, बथुआ, कृष्णनील आदि की समस्या देखी जाती है। संकरी पत्ती वाले खरपतवारों गेहूंसा एवं जंगली जई के नियंत्रण के लिए सल्फोसल्फ्यूरान 75 प्रतिशत डब्ल्यूजी 33 ग्राम 2.5 यूनिट मात्रा प्रति हे. की दर से लगभग 500 ली. पानी में घोलकर प्रथम सिंचाई के बाद 25-30 दिन की अवस्था पर छिड़काव करें। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए मेटसल्फ्यूरान मिथाइल 20 प्रतिशत डब्ल्यूपी 20 ग्राम मात्रा को लगभग 500 ली. पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से फ्लैट फैन नाजिल से प्रथम सिंचाई के बाद 25-30 दिन की अवस्था पर छिड़काव करें। संकरी एवं चैड़ी पत्ती दोनों खरपतवारों के नियंत्रण हेतु सल्फोसल्फ्यूरान 75 प्रतिशत के साथ मेटसल्फ्यूरान मिथाइल 5 प्रतिशत डब्ल्यूजी 40 ग्राम 2.5 यूनिट अथवा मेट्रिब्यून्जीन 70 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 250-300 ग्राम मात्रा लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे0 की दर से फ्लैट फैन नाजिल से प्रथम सिंचाई के बाद छिड़काव करें। गेंहू की फसल में मकोय नामक खरपतवार के नियंत्रण हेतु कारफेंट्राजोन-इथाइल 40 प्रतिशत डीएफ की 50 ग्राम मात्रा को लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। केंद्र की पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉ हर्षिता ने बताया कि गेहूँ को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाने वाले कीटों में दीमक, चैंपा, शूट फ्लाई, तना छेदक तथा बीमारियों में रतुआ, रोली, सेहूॅ, कर्नाल बंट, कण्डुआ, पत्ती धब्बा इत्यादि शामिल है। भूमि जनित कीटों मुख्यतौर पर दीमक के नियंत्रण हेतु ब्यूवेरिया बेसियाना 1.15 प्रतिशत की 2.5 किलो मात्रा को प्रति हे. की दर से 60 से 70 किलो गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर छायादार स्थान पर 8 से 10 दिन तक रखने के उपरांत बुवाई के पहले आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देना चाहिए। उन्होंने बताया कि उक्त बताए गए तरीके से ट्राइकोडर्मा बायोपेस्टीसाइड 1 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. का इस्तेमाल करने से सभी प्रकार के भूमि जनित रोगों से निजात मिलती है। उन्होंने कहा कि हर बीज को सुरक्षा का टीका लगाना अति आवश्यक है जिससे तमाम बीज जनित रोगों से बचाव सम्भव है। थिरम 75 प्रतिशत डब्लू.एस. अथवा कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू.पी. 2.5 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए। माहू के नियंत्रण हेतु 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हे. की दर से प्रयोग करें। उन्होंने किसानों को फसल चक्र अपनाने की सलाह दी साथ ही मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करने को कहा गयाl

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