महराजगंज(राष्ट्र की परम्परा)। आज के दौर में अमीरी का पैमाना गाड़ियों, बंगलों, कपड़ों और बैंक बैलेंस से तय किया जाने लगा है, लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है। जीवन की असली अमीरी न सोने-चांदी में मापी जाती है, न महंगी चीज़ों के जमावड़े में—वह बस इंसान के भीतर बसने वाले गुणों, संस्कारों, संवेदनाओं और आत्म-संतोष में दिखाई देती है।
बहुत से लोग बाहरी दुनिया को प्रभावित करने की होड़ में खुद के भीतर छिपी असली पूंजी को भूल जाते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि एक संतुलित मन, अच्छी सोच, गहरी समझ, प्रेम करने और क्षमा करने की क्षमता, और कठिन परिस्थितियों में भी सकारात्मक बने रहने का साहस—ये वे खजाने हैं, जो किसी भी आर्थिक संपदा से कहीं अधिक स्थायी और मूल्यवान हैं।
समाज में अक्सर ऐसे लोग मिल जाते हैं जिनके पास भौतिक सुख-सुविधाओं की कमी होती है, पर उनका दिल इतना बड़ा होता है कि वे दूसरों के दर्द को समझते, बांटते और कम करने का प्रयास करते हैं। यह मानवीय गुण ही इंसान को अमीर बनाते हैं। वही दूसरी ओर ऐसे लोग भी कम नहीं हैं जिनके पास सब कुछ होते हुए भी मन की गरीबी उन्हें लगातार बेचैन और असंतुष्ट रखती है।
अर्थशास्त्र कहता है कि संपत्ति बढ़ती है और घटती भी है, लेकिन मानवीय मूल्यों का खजाना यदि एक बार बन जाए तो वह जीवनभर साथ रहता है। समाज की असली जरूरत ऐसे ही ‘आंतरिक रूप से अमीर’ लोगों की है, जो अपने चरित्र से प्रेरणा देते हैं, संघर्ष में साहस देते हैं और मानवता को जीवित रखते हैं।
आज जब दुनिया बाहरी चमक-दमक में उलझकर अपनी जड़ों से दूर होती जा रही है, ऐसे समय में यह समझना जरूरी है कि जीवन की समृद्धि बाहरी चीज़ों से नहीं बल्कि भीतर बसी शांति, सरलता और संतोष से मिलती है।
अंततः, इंसान वही अमीर है जो अपने मन में करुणा रखता है, व्यवहार में विनम्रता, सोच में व्यापकता और जीवन में ईमानदारी—क्योंकि यही वे पूंजी हैं जिन्हें कोई चुरा नहीं सकता, कोई घटा नहीं सकता और जो जीवन के हर मोड़ पर साथ देती हैं।
जीवन की असली अमीरी: तिजोरियों में नहीं, इंसान के भीतर छिपी होती है
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