Patiala House Court: दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने वकील महमूद प्राचा को बड़ा झटका देते हुए उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 2019 अयोध्या राम मंदिर फैसले को निरस्त करने की मांग की थी। अदालत ने इस याचिका को फिजूल, भ्रामक और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग बताया और वकील पर ₹6 लाख का जुर्माना ठोका है।
डिस्ट्रिक्ट जज धर्मेंद्र राणा ने अपने आदेश में कहा कि याचिका तथ्यों से परे थी और यह न्यायिक व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करती है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने अयोध्या फैसले को ठीक से पढ़ा ही नहीं, वरना ऐसा भ्रम नहीं होता।
वकील ने जस्टिस चंद्रचूड़ के बयान का गलत अर्थ लगाया
प्राचा ने दावा किया था कि तत्कालीन CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा था कि अयोध्या फैसला भगवान श्रीराम लला द्वारा दिए गए समाधान पर आधारित था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने केवल यह कहा था कि उन्होंने भगवान से मार्गदर्शन की प्रार्थना की थी, न कि किसी पक्ष से समाधान लिया था। अदालत ने कहा कि वकील ने ईश्वर और कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त देवता (ज्यूरिस्टिक पर्सनालिटी) के बीच का फर्क समझे बिना मामला दायर किया।
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कोर्ट की सख्त टिप्पणी और चेतावनी
अदालत ने कहा, “जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो हालात चिंताजनक हो जाते हैं।” कोर्ट ने वरिष्ठ वकील के रवैये को गंभीर लापरवाही बताया और कहा कि न्यायिक प्रणाली के दुरुपयोग को रोकना जरूरी है ताकि समय और संसाधन व्यर्थ न हों।
जज प्रोटेक्शन एक्ट का हवाला
कोर्ट ने कहा कि यह मामला ‘जज प्रोटेक्शन एक्ट, 1985’ के तहत बार है, जिसके अनुसार न्यायिक कार्यों के लिए किसी जज पर सिविल या क्रिमिनल कार्रवाई नहीं हो सकती। अदालत ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए जुर्माना एक लाख से बढ़ाकर छह लाख रुपये कर दिया और कहा कि न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखना सभी की जिम्मेदारी है।
