नई दिल्ली (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। सुप्रीम कोर्ट ने मैसूर दशहरा उत्सव के उद्घाटन समारोह में एक मुस्लिम लेखक की भागीदारी का विरोध करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। यह फैसला भारत के संवैधानिक मूल्यों, विशेषकर धर्मनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, को मजबूती प्रदान करता है।
क्या था मामला?
एक याचिका में मैसूर दशहरा के उद्घाटन के लिए बुकर पुरस्कार विजेता मुस्लिम लेखक को आमंत्रित किए जाने पर आपत्ति जताई गई थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि एक हिंदू त्योहार के उद्घाटन में किसी मुस्लिम व्यक्ति को शामिल करना धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
याचिका की सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ी टिप्पणी करते हुए इसे तुरंत खारिज कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “हमारा संविधान धर्मनिरपेक्षता (Secularism), विचार की स्वतंत्रता और समानता के आदर्शों पर आधारित है। इस तरह की याचिकाएं हमारे संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ हैं।”
न्यायाधीशों ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को उसके धर्म के आधार पर सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल होने से रोकना संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है।
सांस्कृतिक एकता और सहिष्णुता की जीत
यह फैसला न केवल मैसूर दशहरा जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उत्सवों में सभी धर्मों के लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित करता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि भारत का सांस्कृतिक ताना-बाना विभिन्न धर्मों और विचारों के आपसी सम्मान से ही मजबूत होता है।
इस फैसले से यह भी साबित होता है कि देश की सबसे बड़ी अदालत भारतीय समाज में सांस्कृतिक एकता (Cultural Unity) और सहिष्णुता के मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।