Saturday, December 27, 2025
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बीमार तड़पती गाय को नदी किनारे फेंका, कौवे करते रहे नोच-नोचकर हमला

सरकारी योजनाओं की पोल खोलता अमानवीय चेहरा
(देवरिया से शशांक भूषण मिश्र की रिपोर्ट)

सलेमपुर /देवरिया (राष्ट्र की परम्परा)
सलेमपुर नगर पंचायत अंतर्गत नंदावर पुल के नीचे मंगलवार सुबह का दृश्य किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को झकझोर देने वाला था। एक बीमार और तड़पती गाय को नदी किनारे फेंक दिया गया था, जिसकी आंखों में दर्द साफ झलक रहा था। असहाय स्थिति में पड़ी उस गाय पर कौवे नोच-नोचकर हमला कर रहे थे, जबकि वह दर्द से कराह रही थी।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, यह गाय तड़के एक जेसीबी वाहन के जरिए लाकर वहां छोड़ी गई। हालांकि प्रशासन की ओर से इस बात की पुष्टि नहीं की गई है कि जेसीबी किसकी थी और किसने इस गौवंश को यहां लाकर छोड़ा।

स्थानीय निवासियों ने बताया कि उन्होंने सुबह 5 बजे के करीब एक पीली जेसीबी को गाय को फेंकते हुए देखा। कुछ लोगों ने इसका वीडियो बनाने की कोशिश भी की, लेकिन मौके पर मौजूद लोगों ने उन्हें रोक दिया। “यह दृश्य बेहद हृदय विदारक था। गाय की आंखों में जो तकलीफ थी, वो शब्दों में बयान नहीं की जा सकती,” – यह कहना है वहां मौजूद एक ग्रामीण महिला सुनीता देवी का।

गौ-संरक्षण योजनाओं की जमीनी हकीकत

उत्तर प्रदेश सरकार गौ-संरक्षण के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। जगह-जगह गौशालाएं स्थापित की जा रही हैं और पशु स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। लेकिन यह घटना इन दावों की पोल खोलती है। सवाल उठता है कि आखिर इतनी योजनाओं के बावजूद एक बीमार गाय को इस कदर मरने के लिए क्यों छोड़ दिया गया?

गौसेवा को राष्ट्रधर्म मानने वाली सरकार के सिस्टम में यह कैसा अमानवीय व्यवहार है? कहां गए वे अधिकारी, जिन पर गौवंश की देखरेख की जिम्मेदारी है?

स्थानीय लोगों में आक्रोश

घटना के बाद से इलाके में रोष व्याप्त है। लोग इसे प्रशासनिक लापरवाही और संवेदनहीनता का उदाहरण बता रहे हैं। क्षेत्रीय नागरिकों ने मांग की है कि इस पूरे प्रकरण की जांच कराई जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

जनप्रतिनिधियों और पशुपालन विभाग की चुप्पी

हैरत की बात यह है कि घटना की जानकारी सामने आने के बाद भी न तो कोई जनप्रतिनिधि मौके पर पहुंचा और न ही पशुपालन विभाग का कोई कर्मचारी। एक जानवर की तड़पती मौत से उपजा यह सवाल कि क्या हम इतने असंवेदनशील हो चुके हैं कि अब हमें निरीह प्राणियों की पीड़ा भी नहीं दिखती?

मूल प्रश्न अब भी कायम

अगर गाय बीमार थी तो उसे इलाज क्यों नहीं मिला?

नगर पंचायत या पशुपालन विभाग की जिम्मेदारी कौन निभा रहा है?

गौशालाओं में ऐसी बीमार गायों की जगह क्यों नहीं है?

इस मार्मिक घटना ने सिर्फ एक गाय की पीड़ा नहीं दिखाई, बल्कि सिस्टम की वो गहराई उजागर कर दी है, जहां संवेदनशीलता और जिम्मेदारी दोनों ही दम तोड़ती नजर आती हैं।

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