Thursday, October 16, 2025
HomeUncategorizedभ्रष्टाचार के भीष्म पितामह"

भ्रष्टाचार के भीष्म पितामह”

पुराने समय की बात है, जब देश की प्रगति सिर्फ सरकारी फाइलों में होती थी और फाइलें सिर्फ रिश्वत से चलती थीं। ऐसे ही स्वर्णिम युग में पैदा हुए थे बाबू सुखराम — नाम सुखराम, काम ‘सुख से राम को भी परेशान कर देने वाला’। सरकारी दफ्तर में उनकी मौजूदगी किसी पुराने पंखे जैसी थी — चलें या न चलें, आवाज जरूर करते थे।

पद की महिमा

बाबूजी का पद था “सहायक वरिष्ठ अपर विशेष लिपिक अधिकारी”, जिसे कोई समझे या न समझे, काम किसी को नहीं करना होता था। उनका टेबल उनके साम्राज्य का सिंहासन था और टेबल पर रखी कपचाई चाय की प्याली उनकी सत्ता की मुहर।

उनका दफ्तर आने का समय कभी निश्चित नहीं था, लेकिन जाने का समय बिल्कुल तय — जैसे ही दोपहर का खाना खत्म होता, नींद की देवी उन्हें दर्शन देतीं और वे कुर्सी पर ही ‘आंतरिक बैठक’ में लीन हो जाते।

रिश्वत लेने की कला

बाबूजी रिश्वत को सिर्फ पैसे का लेन-देन नहीं मानते थे, वो इसे “संवेदनशील सामाजिक समरसता” कहते थे।
उनकी पसंदीदा टेकनीक थी –
“नोट को हवा में उड़ता दिखाना, और फिर उसे बड़ी सहजता से जेब में समा जाना।”

एक बार तो एक सज्जन ने फाइल के साथ खाली लिफाफा पकड़ा दिया। बाबूजी ने उसे गौर से देखा और बोले –

“जनाब, खाली लिफाफा देना तो ऐसा है जैसे बिना दूध के चाय पिलाना। दस्तावेज़ों के साथ थोड़ी मिठास ज़रूरी है!”

दौलत देवी की शान

बाबूजी की पत्नी, श्रीमती दौलत देवी, मोहल्ले में अपनी अलग पहचान रखती थीं। उन्हें अपने पति की “कड़ी मेहनत” पर गर्व था। वो अकसर कहतीं –

“जो लोग मुफ्त में काम करते हैं, वो समाज का नुकसान करते हैं। सुखराम जी समाज से फीस लेकर काम करते हैं, यानी समाजसेवी हैं।”

घर में अगर कोई मेहमान आ जाता, तो उन्हें सबसे पहले ‘विशेष कुर्सी’ पर बैठाया जाता — जो कभी-कभी थैली से भरे हुए बक्से के ऊपर रखी होती थी। बच्चे पूछते –

“माँ, ये बक्सा इतना भारी क्यों है?”
माँ मुस्कुराकर कहतीं –
“बेटा, इसमें तुम्हारे उज्ज्वल भविष्य की नींव रखी है।”

बच्चों का उज्ज्वल भविष्य

बेटा लखपती लाल पहले क्लास में ‘नकल माफिया’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ, फिर ठेकेदारी में घुसा और पुल बनवाने का ठेका मिला। पुल बनने से पहले ही गिर गया।
जब मीडिया वाले पूछने आए, तो बोला –

“हम तो ट्रायल कर रहे थे। पहले गिराकर देखना ज़रूरी है, अब जो बनेगा वो मजबूत होगा।”

बेटी करोड़पति कुमारी ने बैंक लोन का ऐसा उपयोग किया कि खुद बैंक को ही लोन चाहिए पड़ गया। फिर भी घर में उसकी पूजा होती थी — “बिटिया ने बैंक का भी भरोसा जीत लिया!”

ईमानदारी का दुश्मन नंबर 1

अगर गलती से कोई ईमानदार अफसर दफ्तर में आ जाता, तो बाबू सुखराम उसे एक कोने की कुर्सी पर बिठाकर चाय पिलाते और ज्ञान देते –

“बेटा, ईमानदारी का जमाना नहीं रहा। यह वो बीमारी है जो आदमी को कंगाल बना देती है। तेरे जैसे लोग अगर ज्यादा हुए, तो देश में भूखमरी फैल जाएगी। भ्रष्टाचार ही इकोनॉमी का असली इंजन है!”

सम्मान और विरासत

रिटायरमेंट के दिन बाबूजी को ऑफिस में विशेष सम्मान मिला — एक माला, एक मिठाई का डब्बा और ‘गुप्त धन्यवाद पत्र’, जिसमें लिखा था —

“आपकी वजह से हमारी तनख्वाह समय पर आती रही, वरना बिना रिश्वत के कोई काम होता ही नहीं था।”रिटायरमेंट के बाद भी बाबू सुखराम समाज को ‘गाइडेंस’ देते रहे। गाँव के बच्चे उन्हें “घूस गुरुजी” कहने लगे। उन्होंने बच्चों के लिए एक पुस्तक भी लिखी –
“रिश्वत शास्त्र: नीति, गीता और घीता”, जिसमें रिश्वत लेने के 108 वैदिक उपाय बताए गए हैं।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments