Tuesday, December 23, 2025
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दिव्य जीवन में रूपांतरण हेतु योग, श्रद्धा एवं समर्पण आवश्यक: प्रो. ज्योत्सना श्रीवास्तव

  • गोरक्षनाथ शोधपीठ में योग कार्यशाला के तीसरे दिन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो. ज्योत्सना श्रीवास्तव का व्याख्यान

गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय स्थित महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ द्वारा कुलपति प्रो. पूनम टण्डन के संरक्षण में चल रहे सप्तदिवसीय ग्रीष्मकालीन योग कार्यशाला के अंतर्गत अपरान्ह 3 बजे श्रीअरविन्द के दर्शन में योग विषय पर कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि के स्वागत के साथ शोधपीठ के उप निदेशक डॉ. कुशलनाथ मिश्र के द्वारा हुआ। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के दर्शन एवं धर्म विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर ज्योत्सना श्रीवास्तव रहीं।
प्रो. ज्योत्सना श्रीवास्तव ने श्रीअरविन्द का योग विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने श्रीअरविन्द के समग्र योग की चर्चा करते हुए उनके आध्यात्मिक रूपांतरण पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि श्रीअरविन्द इसी जीवन में दिव्य जीवन की अभिव्यक्ति की बात करते है। दिव्य जीवन आध्यात्मिक रूपांतरण से होता है। हमारा रूपांतरण बौद्धिक, शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक हर तरह से होता है। सभी के अंदर दिव्य शक्ति है, लेकिन हम जानते नहीं है। योग से दिव्य जीवन की अभिव्यक्ति होती है। योग की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि श्रीअरविन्द ने आरोहण एवं अवरोहण के माध्यम से योग को समझाया है। योग एक साधना पद्धति है, यह केवल एक्सर्साइज़ नहीं है। इस साधना हेतु हमे अपने आपको तैयार करना होता है। साधक अपनी क्षमतानुसार इस मार्ग का चयन कर सकता है। इसके लिए हमे अपने मन पर नियंत्रण एवं श्रद्धा होना चाहिए। श्रद्धा एक ज्ञान नहीं बल्कि एक अनुभूति है। यह अहम या संदेह नहीं है। दिव्य जीवन में रूपांतरण हेतु समर्पण का होना अवशयक है। समर्पण प्रेम भाव से उपन्न होता है। प्रेम भाव से ही भक्ति उत्पन्न होती है। आरोहण की प्रक्रिया में मानस से अतिमानस के बीच कई स्तर होते है। उन्होंने गीता का उल्लेख करते हुए कहा कि गीता सभी दृष्टियों से व्याख्या के अनुकूल है। निष्काम कर्म अतिमानस तक पहुचने हेतु अति सहायक है। योग की सिद्धि हेतु यह बहुत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि शिव का आह्लाद नृत्य परम तत्त्व है। दिव्य जीवन इसी सृष्टि में अपने आत्म शक्ति द्वारा प्राप्त करना संभव है। हमे अपने अंदर रूपांतरण करना चाहिए। सभी के अतिमानस में रूपांतरण से सर्वमुक्ति होती है।
प्रशिक्षण सत्र के तीसरे दिन भी प्रतिभागियों की काफी संख्या रही। योग प्रशिक्षण डा. विनय कुमार मल्ल के द्वारा दिया गया। योग प्रशिक्षण में लगभग 30 लोगों ने भाग लिया। इसमें स्नातक, परास्नातक, शोध छात्र आदि विद्यार्थी एवं अन्य लोग सम्मिलित हुए।
इस कार्यक्रम का संचालन शोधपीठ के रिसर्च एसोसिएट डॉ. सुनील कुमार द्वारा किया गया। वरिष्ठ शोध अध्येता डॉ. हर्षवर्धन सिंह द्वारा मुख्य वक्ता एवं समस्त प्रतिभागियों एवं श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया गया। विभिन्न विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के साथ ही विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के आचार्य सहित शोधपीठ के सहायक ग्रन्थालयी डॉ. मनोज कुमार द्विवेदी, चिन्मयानन्द मल्ल, अर्चना, मोनिका, सुनीता, नीतू, मधु आदि उपस्थित रहे।

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