Monday, December 22, 2025
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महंगाई और आम जनजीवन: नीति की सबसे बड़ी परीक्षा

कैलाश सिंह

महराजगंज(राष्ट्र की परम्परा)।देश में बढ़ती महंगाई आज सिर्फ एक आर्थिक शब्द नहीं रह गई है, बल्कि यह आम जनजीवन की सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। रसोई से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और आवास तक—हर क्षेत्र में कीमतों की लगातार बढ़ोतरी ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। सीमित आय में गुजर-बसर करने वाले परिवारों के लिए महीने का बजट अब कागज पर नहीं, चिंता की लकीरों में बदल चुका है।
सबसे अधिक असर दैनिक जरूरतों की वस्तुओं पर पड़ा है। आटा, दाल, चावल, तेल, सब्जी और दूध जैसी बुनियादी चीजें लगातार महंगी हो रही हैं। रसोई का खर्च दोगुना हो गया है, जबकि आमदनी लगभग स्थिर है। मध्यम वर्ग जहां खर्चों में कटौती कर किसी तरह संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है, वहीं दिहाड़ी मजदूर और निम्न आय वर्ग के लिए दो वक्त की रोटी भी चुनौती बनती जा रही है।
महंगाई का असर शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी साफ दिखाई दे रहा है। निजी स्कूलों की फीस, किताबें, कॉपियां और यूनिफॉर्म महंगी होने से अभिभावक बच्चों की पढ़ाई को लेकर असमंजस में हैं। इलाज की लागत बढ़ने से गरीब परिवार अस्पताल जाने से पहले कई बार सोचने को मजबूर हैं। ऐसे में महंगाई सिर्फ जेब पर नहीं, बल्कि समाज के भविष्य पर भी असर डाल रही है।
ईंधन की बढ़ती कीमतों ने परिवहन खर्च को बढ़ा दिया है, जिसका सीधा असर हर वस्तु की कीमत पर पड़ता है। पेट्रोल-डीजल महंगे होते ही महंगाई की श्रृंखला पूरे बाजार में फैल जाती है। किराया, माल-भाड़ा और सेवाएं सभी महंगी हो जाती हैं, जिससे आम आदमी के लिए राहत की गुंजाइश और कम हो जाती है। महंगाई को नियंत्रित करना किसी भी सरकार की आर्थिक नीति की सबसे बड़ी परीक्षा मानी जाती है। केवल आंकड़ों में गिरावट दिखाना पर्याप्त नहीं, जरूरी है कि उसका असर आम जनता की जिंदगी में महसूस हो। जमाखोरी पर सख्ती, आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत करना और रोजगार व आय बढ़ाने के ठोस कदम उठाना समय की मांग है।
स्पष्ट है कि महंगाई पर काबू पाने के लिए नीतियों में संवेदनशीलता और जमीन पर सख्त अमल दोनों जरूरी हैं। जब तक आम आदमी की थाली सस्ती नहीं होगी और जीवन का बोझ हल्का नहीं पड़ेगा, तब तक महंगाई सरकार और व्यवस्था दोनों के लिए सबसे बड़ी कसौटी बनी रहेगी।

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