मुहावरा है “अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान,”
प्रश्न यह है कि पहलवान से गधे का क्या ताल्लुक,
पहलवान आदमी होता है, गधा जानवर होता है,
फिर कैसे पहलवान और गधा से मुहावरा बन गया?
वास्तव में मूल मुहावरा कुछ यूँ था,
अल्लाह मेहरबान तो गदा पहलवान
यानी गधा की जगह ‘गदा’ शब्द था,
फारसी में ‘गदा’ का अर्थ है भिखारी।
अर्थात अल्लाह मेहरबान तो गरीब
भिखारी भी ताकतवर हो सकता है,
हिन्दी भाषा में गदा शब्द दूसरे अर्थ में
पहलवान के साथ प्रचलित होता है।
आमलोग फारसी के ‘गदा’ शब्द से
परिचित नहीं थे, इसलिए गदा गदहा
बना और फिर प्रत्यक्ष गधा बन गया,
और मुहावरे में गधा प्रचलित हो गया।
एक मुहावरा है “अक्ल बड़ी या भैंस
अब अक्ल से भैंस का क्या रिश्ता,
इस मुहावरे में भैंस नहीं ‘वयस’
शब्द था, वयस का अर्थ उम्र होता है।
मुहावरे का अर्थ, ‘अक्ल बड़ी या उम्र’
उच्चारण दोष के कारण ‘वयस’
पहले वैस बना फिर धीरे-धीरे भैंस
में बदल गया और प्रचलित हो गया।
एक मुहावरा है “धोबी का कुत्ता,
घर का न घाट का” मूल मुहावरे में
कुत्ता की जगह ‘कुतका’शब्द था,
कुतका का अर्थ लकड़ी की खूँटी।
कुतका घर के बाहर लगी रहती थी,
उस पर गंदे कपड़े लटकाए जाते थे,
धोबी उस कुतके से गंदे कपड़े उठा
कर घाट पर धोने को ले जाता था ।
कपड़े धोने के बाद धुले कपड़े उसी
कुतके पर टाँगकर चला जाता था,
इसलिए यह कहावत बनी थी “धोबी
का कुतका घर का ना घाट का”।
कालांतर में कुतके का प्रयोग बंद हो
गया, लोग इस शब्द को भूल गए,
कुतका कुत्ता हो गया, लोग कहनेलगे
“धोबी का कुत्ता, घर का ना घाट का”।
जबकि बेचारा कुत्ता धोबी के साथ
घर में भी और घाट पर भी रहता है,
इसलिए मुहावरा कभी कभी आदित्य
अपभ्रंश बन अर्थ का अनर्थ देता है।
- कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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