हमारा मस्तिष्क, वचन और हमारे
सत्कर्म हमारी शान्ति के आधार हैं,
सत्य और अहिंसा तो परम धर्म है,
पंथ निरपेक्षता जिसका सूक्ष्म मर्म है।
यह भी सत्य है कि हमारे इतिहास में
कदाचित युद्ध के खून ख़राबे और
जड़ जोरू व ज़मीन के विवादों के
सबसे अधिक व बड़े सूत्रधार हैं।
पूरी की पूरी सभ्यता व संस्कृति
अच्छाइयों और विभिन्न बुराइयों
की विविधिता से निहित सन्निद्ध है
पाप और पुण्य दोनो की प्रतिबद्धि है।
ऊपर वाले के साथ यदि हमारे
सम्बन्ध मधुर और मजबूत हैं,
तो धरती वाले या नीचे वाले लोग
हमारे साथ साथ घूमते फिरते हैं।
परमात्मा की या ऊपर वाले की
तस्वीर अपने मन में या कार्य कक्ष
में लगा कर प्रदर्शित कर ली जाती है,
सारी दुनिया हमारे पक्ष में हो जाती है।
इस पर विश्वास करो उस पर न करो
ऐसा अक्सर कुछ लोग कहा करते हैं,
पर स्वयं पर विश्वास करने की सोच
हम सभी अपने अंतर्मन में रखते हैं ।
मात्र बातों से किसी को पहचानना
मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है,
उतना बता नहीं पाता है हर शख़्स,
जितना समझता व एहसास करता है।
जीवन में ऐसे लोग भी होते हैं जिन्हें
हम समय के साथ भूल ही जाते हैं,
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, आदित्य
जिनके साथ हम समय भूल जाते हैं।
कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य
लखनऊ
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