डाक हिमालय की बर्फीली
लेकर चलीं हवाएं,
सुबह-शाम मैदानों की
सांकल चढ़कर खाकाएं।
क्रूर-निर्दयी से मर्माहत
बार-बार पिस-पिस के
अंधियारे की बांहों में
चांदनी कसमसा सिसके
कुहरे की चादर ओढ़े
अंसुआई आंखों भोरें
अनुभूति को कंपकंपी की
दावत बांटती दिशाएं।
बर्बर हिम की सत्ता के ध्वज
जड़ें जमाते जाते
ठिठुरन के खूनी पंजे
घर-वन-बाग को रुलाते
रातों पर नागिन बयार के
जहर कंहर बरपायें
दिन में भी धूप को मुड़ेरों-
पर चढ़ नाच नचाएं।
पीड़ा से अलाव के बदन
दोहरे होते जाते
तो भी पछुआ के कांटो के
मुंह न मार कुछ पाते
सहमी गंगाजल की भक्ति
घाट ओढ़े सन्नाटे
अण्डज-पिण्डज सब सूर्य से
जान की खैर मनाएं।
•शिवाकांत मिश्र ‘विद्रोही’
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों के खिलाफ दिल्ली में जोरदार प्रदर्शन, सुरक्षा व्यवस्था कडी नई…
मूर्खता और अड़ियलपन से भरी नकटी सरकार -विष्णु नागर तो मोदी सरकार ने अपनी नाक…
महराजगंज (राष्ट्र की परम्परा)। जनपद में लगातार बढ़ रही ठंड और शीतलहर के बीच आमजन…
दिल्ली में वायु प्रदूषण गंभीर स्तर पर, 27 स्टेशनों पर AQI 400 के पार, स्वास्थ्य…
अमेठी (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। जिले के मुसाफिरखाना कोतवाली क्षेत्र में लखनऊ–वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर…
बलिया (राष्ट्र की परम्परा)घनश्याम तिवारी जिले के एक लाख 83 हजार 506 सक्रिय मनरेगा श्रमिकों…