(उदय भान )
भारत की संस्कृति और परंपरा में प्रकृति के हर रूप को विशेष महत्व दिया गया है। पर्व-त्योहारों पर कई अनुष्ठान, मान्यताएँ और परंपराएँ हमारे जीवन में सुख-समृद्धि और शुभता के प्रतीक मानी जाती हैं। इन्हीं मान्यताओं में एक प्रमुख परंपरा है विजयादशमी (दशहरा) के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन करना। लोकमान्यता है कि इस दिन यदि किसी को नीलकंठ पक्षी दिखाई दे जाए, तो आने वाला वर्ष सुख, सफलता और विजय से भर जाता है। यह परंपरा न केवल धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं से जुड़ी है बल्कि इसके पीछे प्रकृति के साथ गहरे भावनात्मक रिश्ते की कहानी भी छिपी है।
नीलकंठ पक्षी की पहचान
नीलकंठ एक सुंदर पक्षी है जिसका वैज्ञानिक नाम Indian Roller है। इसके शरीर पर हरे, नीले और भूरापन लिए पंख होते हैं, जबकि उड़ान भरते समय पंखों में गहरा नीला और आसमानी रंग झलकता है। यह दृश्य इतना मनमोहक होता है कि देखने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है। भारत के अधिकांश हिस्सों में यह पक्षी पाया जाता है। नीलकंठ का नाम भगवान शिव के नीलकंठ अवतार से भी जोड़ा जाता है, क्योंकि समुद्र मंथन के समय जब भगवान शिव ने हलाहल विष पिया था तो उनका कंठ नीला हो गया था।
विजयादशमी पर नीलकंठ दर्शन की परंपरा
प्राचीन मान्यता है कि विजयादशमी के दिन नीलकंठ का दर्शन करना अत्यंत शुभ फलदायक माना जाता है। लोग इस दिन सुबह-सुबह घर से निकलकर मंदिरों, खेतों और बाग-बगीचों की ओर जाते हैं ताकि नीलकंठ का दर्शन कर सकें। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोग दशहरे पर नीलकंठ देखने के लिए उत्सुक रहते हैं।
लोककथाओं में कहा गया है कि दशहरे के दिन नीलकंठ भगवान राम का दूत बनकर उनके साथ लंका विजय की यात्रा पर गया था। जब रामजी युद्ध के लिए निकले तो नीलकंठ मार्गदर्शन करता रहा और विजय की सूचना सबसे पहले उसी ने दी। तभी से इसे विजय और शुभता का प्रतीक माना जाने लगा।
रामायण से जुड़ी कथा
एक रोचक कथा यह भी प्रचलित है—
लंका पर चढ़ाई से पहले भगवान श्रीराम ने विजय के संकेत के लिए देवताओं की प्रार्थना की थी। उसी समय आकाश में नीलकंठ पक्षी प्रकट हुआ और उसने मधुर स्वर में कलरव किया। इसे शुभ संकेत मानकर श्रीराम ने युद्ध की ओर प्रस्थान किया। युद्ध में विजय मिलने के बाद नीलकंठ को शुभता और विजय का प्रतीक मान लिया गया। तब से दशहरे पर नीलकंठ दर्शन की परंपरा शुरू हुई।
लोक परंपराओं में नीलकंठ
भारत के कई हिस्सों में ग्रामीण लोग नीलकंठ को भगवान शिव और भगवान विष्णु से जोड़ते हैं। कई जगह यह विश्वास है कि दशहरे पर नीलकंठ को देखने से घर-परिवार पर संकट नहीं आता और आने वाला वर्ष अच्छे परिणाम लेकर आता है।
राजस्थान और मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में बच्चे दशहरे पर सुबह नीलकंठ को देखने के बाद ही नाश्ता करते हैं।
बिहार और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इसे घर की छत या मंदिर से देखने का विशेष आयोजन करते हैं।बंगाल और ओडिशा में भी इसे शक्ति की विजय का प्रतीक माना जाता है।
नीलकंठ और पर्यावरण का संबंध
जहाँ एक ओर यह पक्षी धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण की दृष्टि से भी इसकी अहम भूमिका है। नीलकंठ खेतों में पाए जाने वाले हानिकारक कीड़े-मकोड़ों को खाकर फसलों की रक्षा करता है। यही कारण है कि ग्रामीण किसान इसे शुभ और उपयोगी मानते हैं। दशहरे पर नीलकंठ का दर्शन केवल आस्था ही नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति भी है।
आधुनिक दौर में बदलती तस्वीर
आज शहरीकरण, प्रदूषण और पेड़ों की कटाई के कारण नीलकंठ पक्षी की संख्या में कमी आई है। जहाँ पहले दशहरे पर यह पक्षी आसानी से दिख जाता था, वहीं अब कई शहरों में इसे देख पाना कठिन हो गया है। इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों में अब भी लोग इसे देखने का इंतजार करते हैं।
पर्यावरणविदों का मानना है कि नीलकंठ संरक्षण केवल धार्मिक मान्यता तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे प्रकृति की धरोहर मानकर सुरक्षित रखना जरूरी है।
कहानी : एक गाँव की परंपरा
पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव की यह कहानी है। दशहरे की सुबह गाँव के बच्चे बड़ों के साथ पास के जंगल और खेतों में जाते थे। सभी की आँखें आसमान में नीलकंठ को खोजती रहतीं। जैसे ही कोई पक्षी उड़ता, सभी उत्साह से चिल्लाते—”नीलकंठ आया!”
गाँव के बुजुर्ग बताते कि नीलकंठ का दर्शन होते ही आने वाले वर्ष में खेती अच्छी होगी, घर में सुख-समृद्धि आएगी और बीमारियाँ दूर होंगी।
एक बार गाँव के एक गरीब किसान के बेटे ने दशहरे पर नीलकंठ का दर्शन किया। अगले ही वर्ष उस किसान की फसल इतनी अच्छी हुई कि उसका कर्ज उतर गया और घर में समृद्धि आ गई। यह कथा गाँव में आज भी सुनाई जाती है, और हर वर्ष बच्चे उसी उत्साह से नीलकंठ की प्रतीक्षा करते हैं।
विजयादशमी और नीलकंठ : संदेश
विजयादशमी का पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इसी दिन नीलकंठ दर्शन की परंपरा हमें यह संदेश देती है कि जीवन में सकारात्मक संकेतों को पहचानना और उन्हें आत्मबल में बदलना आवश्यक है। नीलकंठ का दर्शन केवल आस्था नहीं बल्कि विश्वास है कि कठिनाइयों के बाद भी विजय निश्चित है।
नीलकंठ पक्षी और विजयादशमी का रिश्ता केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं है, बल्कि यह प्रकृति, संस्कृति और लोक परंपराओं का सुंदर संगम है। एक ओर यह हमें हमारे पौराणिक अतीत से जोड़ता है, वहीं दूसरी ओर प्रकृति संरक्षण का संदेश भी देता है। विजयादशमी पर नीलकंठ दर्शन की परंपरा हमारी संस्कृति की जीवंतता को दर्शाती है और हमें याद दिलाती है कि जीवन में विजय उसी को मिलती है जो शुभ संकेतों को आत्मबल में बदलकर आगे बढ़ता है।
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