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स्वतंत्रता की दौड़ में खो गए संस्कार: जब चार मीठे बोल ने मां-बाप के अरमानों को जला डाला

✍️ राजकुमार मणि त्रिपाठी

आज हम उस मोड़ पर आ खड़े हुए हैं, जहां “स्वतंत्रता” का अर्थ आज़ादी नहीं, बल्कि “बेखौफ स्वार्थ” बन गया है। कभी यही स्वतंत्रता हमें उड़ने की प्रेरणा देती थी — कुछ बनने, कुछ करने, अपने माता-पिता के सपनों को साकार करने की ताकत देती थी। लेकिन आज, वही स्वतंत्रता एक ऐसी दौड़ बन गई है, जिसमें दिशा खो गई है, संस्कार धुंधले हो गए हैं और मानवीय भावनाएँ कहीं पीछे छूट गई हैं।
कभी हम स्कूल जाते समय अपने बस्ते में सिर्फ किताबें नहीं, बल्कि पूरे परिवार के अरमान लेकर चलते थे। मां की उम्मीदें, पिता की मेहनत, भाई-बहन की खुशियाँ — सब उस छोटे से बस्ते में समा जाते थे। हमारी हर सफलता में उनका आशीर्वाद झलकता था। लेकिन आज, समय की तेज़ रफ्तार और दिखावे की दुनिया ने रिश्तों की गहराई को सतही बना दिया है।
आज का युवा अपने मन की “आजादी” के नाम पर माता-पिता के अनुभव और संस्कारों को पुराना समझ बैठा है। चार मीठे बोल, कुछ झूठे वादे, और सोशल मीडिया की चमक-दमक ने उसे उस राह पर ला खड़ा किया है, जहाँ सच्चे रिश्तों की जगह अस्थायी भावनाओं ने ले ली है। प्यार के नाम पर लोग अपने भविष्य, परिवार और आत्म-सम्मान तक को दांव पर लगा देते हैं।
कई बार देखा जाता है कि प्रेम या झूठी आज़ादी के नशे में युवा अपने मां-बाप के अरमानों को कुचलकर आगे बढ़ जाते हैं। जब होश आता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है — ज़िंदगी राख बन चुकी होती है, और मन में बस पछतावा रह जाता है।
❤️ मां-बाप के अरमानों को कैसे संवारें: सुझाव

  1. संवाद बनाए रखें:
    मां-बाप से बात करें, अपनी सोच और निर्णयों को साझा करें। उनकी सलाह में अनुभव का सार होता है।
  2. संस्कारों को ताकत बनाएं:
    स्वतंत्रता का अर्थ अनुशासनहीनता नहीं है। अपने संस्कारों को अपने सपनों की नींव बनाइए, बेड़ियाँ नहीं।
  3. भावनाओं को समझें, सिर्फ महसूस न करें:
    प्यार की मिठास तभी स्थायी होती है जब उसमें जिम्मेदारी और ईमानदारी हो। भावनाओं के बहाव में गलत कदम न उठाएँ।
  4. परिवार को प्राथमिकता दें:
    जो लोग आज आपके साथ खड़े हैं — वही असली अपने हैं। प्रेम जीवन का हिस्सा हो सकता है, पर परिवार जीवन का आधार है।
  5. स्वतंत्रता का सही अर्थ समझें:
    सच्ची स्वतंत्रता वही है जो आपको औरों के सपनों का सम्मान करना सिखाए, न कि उन्हें तोड़कर खुद के लिए रास्ता बनाए।
    🌸 आज हमें यह सोचना होगा कि “स्वतंत्रता” की परिभाषा आखिर कब और कैसे इतनी स्वार्थी हो गई? क्या वाकई आज हम स्वतंत्र हैं, या केवल अपनी भावनाओं और इच्छाओं के गुलाम बन चुके हैं?
    मां-बाप का सपना हमारी ज़िम्मेदारी है, उनका विश्वास हमारी ताकत है। अगर हम इस विश्वास को सहेज पाए, तो यही सच्ची स्वतंत्रता होगी — जिसमें प्रेम, सम्मान और जिम्मेदारी तीनों साथ चलते हैं।
rkpNavneet Mishra

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