डाॅ सतीश पाण्डेय व नीरज मिश्र की रिपोर्ट
महराजगंज ( राष्ट्र की परम्परा) भगवान सूर्य के प्रति आस्था निवेदित करने का महापर्व छठ पूजा शुक्रवार को नहाय-खाय से शुरू होगा। 18 नवंबर को खरना, 19 नवंबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य और 20 को उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ चार दिनों के पर्व का समापन होगा। चार दिवसीय छठ पूजा की तैयारियां शुरू हो गई हैं। दुकानों पर खरीदारों की भीड़ जुटने से बाजारों में रौनक दिखने लगी है। जिले से लेकर गांवों तक घाटों व पोखरों की साफ-सफाई होने लगी है।जिले के महराजगंज , फरेन्दा,निचलौल ,नौतनवा , सिसवा , घुघली , लक्ष्मीपुर ,ठूठीबारी , पनियरा ,परतावल , शिकारपुर समेतआस- पास के इलाकों के बाजार सज गए हैं। लोग पूजा के लिए छोटी से छोटी सामग्री जुटाने में लगे हैं। छठ पूजा के लिए कोसी, पीतल या बांस का सूप, दउरा, साड़ी, गन्ना, नारियल, फल सहित सामर्थ के हिसाब से हर सामान की खरीदारी होने लगी है। साड़ियों की दुकान पर महिलाओं की भीड़ बढ़ गई है। साथ ही इस समय चूड़ी, बिंदी सहित महिलाओं की साज -सज्जा से संबंधित दुकानों पर भी लोगों की भीड़ देखी जा सकती है।
पहला दिन: नहाय खाय
छठ पर्व का आरंभ नहाय खाय से होता है। यह 17 नवंबर दिन शुक्रवार को है। इस दिन चतुर्थी तिथि का मान दिन में 11 बजकर 38 मिनट पश्चात पंचमी तिथि, पूर्वाषाढ़ नक्षत्र संपूर्ण दिन भर और रात को दो बजकर 37 मिनट, पश्चात उत्तराषाढ़ है। इस दिन धृतियोग और प्रवर्धमान नामक औदायिक योग है और इसके अतिरिक्त स्थायी योग (जय योग), रवियोग और द्विपुष्कर योग भी है। इस प्रकार इस दिन पांच शुभ योगों की स्थिति बन रही है। पंडित उमेश चन्द्र शुक्ल के अनुसार, छठ महापर्व नहाय खाय के साथ आरंभ होता है। नहाय-खाय के अंतर्गत व्रती महिलाएं नदी, तालाब आदि में जाकर स्नान करेंगी। घर आकर खाना बनाएंगी। खाने में कद्दू व चावल बनाया जाता है। श्रद्धालु इसे कद्दू भात कहते हैं। नहाय-खाय के दिन अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी बनाई जाती है। व्रतियों के प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही परिवार के अन्य लोग भोजन ग्रहण करते हैं।
दूसरा दिन: खरना
छठ पर्व का दूसरा दिन खरना है। इस दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी तिथि का मान सुबह नौ बजकर 53 मिनट मिनट, पश्चात षष्ठी तिथि है। इस दिन उत्तराषाढ़ नक्षत्र दिन भर और रात को एक बजकर 22 मिनट तक, इसके बाद श्रवण नक्षत्र और शूल तदुपरि वृद्धि नामक योग है। प०कृण्ण मोहन तिवारी के अनुसार, इस दिन व्रती महिलाएं उपवास करेंगी। शाम को पूजा करने के उपरांत व्रत का पारण करेंगी। व्रत खोलने में नैवेद्य और प्रसाद का उपयोग करेंगी। दिनभर उपवास रखकर शाम तक सूर्य भगवान की पूजा करने के पश्चात खीर पूड़ी का भोग लगाकर हवन किया जाता है।
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य
यह छठ महापर्व का तीसरा दिन है। इस दिन पंचमी तिथि सुबह आठ बजकर 15 मिनट तक, पश्चात षष्ठी तिथि है। इस दिन मूल नक्षत्र दिन में 10 बजकर 34 मिनट तक पश्चिम पूर्वाषाढ़, सुकर्मा और सिद्धि नामक औदायिक योग है। शास्त्री उमेश शुक्ल ने बताया कि इस दिन व्रती दिनभर व्रत रखकर अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगी। शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को तालाब या नदी में अर्घ्य देंगी। अर्घ्य दूध और जल से दिया जाता है। अर्घ्य देने के बाद सूपों में रखा सामान भगवान सूर्य और माता षष्ठी देवी को अर्पित किया जाता है ।चौथा दिन : उगते हुए सूर्य को अर्घ्य यह दिन छठ महापर्व का अंतिम दिन है। इस दिन धनिष्ठा नक्षत्र और ध्रुव योग और शुभ नामक नामक औदायिक योग है। इस प्रकार सूर्य षष्ठी का महापर्व प्रवर्धमान योग से प्रारंभ होकर शुभ योग में समाप्त हो रहा है। ऐसा योग बहुत मुश्किल से प्राप्त होता है।शास्त्री उमेश शुक्ल के अनुसार, सूर्य को परम ब्रह्म और माया षष्ठी को परा प्रकृति की संज्ञा दी जाती है। इस महापर्व पर समस्त देवगणों की अनुकंपा व्रतियों को प्राप्त होगी। इस दिन व्रती ब्रह्म मुहूर्त में नई अर्घ्य सामग्री लेकर जलाशय में खड़ी होकर अरुणोदय की प्रतीक्षा करेंगी। जैसे ही क्षितिज पर अरुणिमा दिखाई देगी, वह मंत्रोच्चार के साथ भगवान सूर्य को अर्घ्य देंगी। इसके बाद वह व्रत का पारण करेंगी।
अर्घ्य मुहूर्त19 नवंबर सायंकाल पांच बजकर 22 मिनट पर अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। 20 नवंबर
सुबह छह बजकर 39 मिनट पर सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया जाएगा।
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