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शक्ति प्रेम की और भय शक्ति में
बिलकुल विपरीत स्थिति होतीं हैं,
नैतिक बल और अनैतिक बल जैसी
दोनो की अनुभूति अलग होती है ।
प्रेम शक्ति सहृदय इंसानों को प्रेम
सहित जोड़ने की ताक़त रखती है,
भय शक्ति इसके उल्टे दंडित कर,
तोड़ने का अहं प्रदर्शित करती है ।
प्रेम शक्ति के मिलने से संतोष मिले,
भय शक्ति पाकर असंतोष बढ़ता है,
जीवन में संतोष जिसे सुख देता है,
उसका जीवन शांत सहज होता है।
सफलता, संतोष दोनो, जीने को
अति सुखमय सरल बना देते हैं,
पर सफलता से ज़्यादा महत्व,
हम सभी केवल संतोष को देते हैं।
सफलता का मापदंड दूसरों
द्वारा ही किया जा सकता है,
पर संतोष स्वयं के दिल-दिमाग़
से महसूस किया जा सकता है।
फिर भी उत्साह और जोश सभी को
सफलता की उम्मीद बँधाये रखते हैं,
बस हौसला बुलंद रखना होता है,
संतोष और धैर्य भी रखना होता है।
वैसे तो वक्त वक्त की बात है,
ईश्वर की माया अति अद्भुत है,
सूरज, चाँद ग्रहण लगने पर
ओझल ओझल से दिखते हैं ।
सूरज की ऊर्जा चाँदनी चाँद की
ग्रहण समापन होते आ जाती हैं,
आदित्य खगोलिक चक्र प्रकृति
अनुपम शृंगार धरा पर लाती है ।
डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र, ‘आदित्य’
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