
बलिया (राष्ट्र की परम्परा)। भगवती सरयू के दक्षिण तटवती ग्राम दुहा बिहरा में विश्वकल्याणार्थ हो रहे अद्वैत शिवशक्ति कोटिहोमात्मक राजसूय महायज्ञ के सातवें दिन भी वैदिक यज्ञमण्डप में यक्ष भगवान का पूजन अर्चन आरती स्तुति की गयी। होमगन्ध से वातावरण सुवासित हो गया। सान्ध्य सत्र में साध्वी आर्या पण्डित ने कृष्णद्वारा मानसी गंगा के प्राकट्य तथा इन्द्र के मानमर्दन पर प्रकाश डाला। कृष्ण ने इन्द्र प्रेरित साँवर्तक मेघों की भयंकर वर्षा से व्रजवासियों की रक्षा की। चीरहरण प्रसंग में कहा कि व्रज- वनिताएँ कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने हेतु ब्रह्ममुहुर्त में निर्वस्त्र स्नान कर कात्यायिनी माँ की पूजा करती थीं। एक दिन छ: वर्ष के कन्हैया उनके वस्त्र कदम्ब की डाल पर टाँगकर उसी पेड़ पर बैठ जाते हैं और उनके वस्त्र माँगने पर भी उन्हें नहीं देता कृष्ण उनके नग्न स्नानको शास्त्र निषिद्ध बताया। गोपियाँ क्षमा माँगी तो कन्हैया उनके अपराध क्षमा कर आगामी शरद पूर्णिमा को महारास में उनका मनोरथ पूर्ण करने का वचन देते हैं। जब रास का समय आया तो कृष्ण ने वेणु बजायी। उनकी बंशी- ध्वनि से पाषाण पिघल जाते, नदियों का जल-प्रवाह रुक जाता तथा गौवें हिरणादि स्तब्ध हो अंति पर आज की अंशी – ध्वनि गोपियों को ही सुनायी दी। गोपियाँ जो जहाँ थीं वहीं से दौड़ पड़ी। योगमाया के ब्रह्माण्ड में कृष्ण बोले- स्वागत महाभागा ! पर यहाँ आपका आना क्यों हुआ ! गोपियाँ बोलीं- तन के पति जो भी हैं किन्तु हमारे मन के पति आप हैं। हम कहाँ जायें? विषयी आप के पास पहुँच नहीं सकता, हम निर्विषय होकर आपके पास आयी है। यदि हम लौट भी जायें तो बावरी बनकर भटकती रह जायेंगी। महारास में गोपियों को अपने रूप लावण्य का अभिमान हो गया, तब कृष्ण अदृश्य हो गये। गोपियाँ बन वन भटकत, लता-गुल्मों से पूछती यमुना तट अकेली पड़ी राधाजी के पास पहुँच प्रिय वियोग में मर्मस्पर्शी गीत गायन की । कृष्ण प्रकट हुए, यस पूरी हुई। तीनों लोकों अभक्तिभूमि वृन्दावन की महिमा सर्वोपरि है। भागवत शास्त्र मुक्ति का निषेध और भक्ति की प्रेरणा देता है। वालू पर गोपियों की बिक्री ओढ़नी पर प्रभु विधाम करते हैं जो कि योगियों को भी दुर्लभ है। वस्तुतः स्त्रियों का जीवन आत्मसमर्पण से तथा पुरुषों का संघर्ष से शुरू होता है।
शुरू कन्स-वध प्रसंग में कहा कि कन्यके भेजे अक्रूर जी दिन भर में मथुरा से वृन्दावन पहुँचते हैं और कृष्ण-बलराम को लेकर मथुरा आते हैं। कृष्ण वहाँ धाबी, कुवलयापीड हाथी आदि को मारकर अन्ततः कन्स- पधकर देवकी – वसुदेव को कारागार से मुक्त करते हैं। कन्स की पत्नियाँ अस्तिव प्राप्ति अपने पिता अशरान्ध को समाचार बताती है। जरासन्ध 17 बार हारकर 18 वीं बार मथुरा को घेर लिया, तब तक कृष्ण परिजन सहितद्वारिका जा बसे।
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