18 नवंबर का जन्मे इतिहास
भारत के इतिहास में 18 नवंबर सिर्फ एक तारीख नहीं बल्कि एक दर्पण है—जो हमें उन लोगों के योगदान और संघर्ष की याद दिलाती है, जिन्होंने इस देश के विचार, संस्कृति, राजनीति और न्याय प्रणाली को मजबूत आधार दिया। यह दिन कई महान जन्मों की कहानियों को समेटे हुए है। आइए, जानें उन हस्तियों को जिन्होंने 18 नवंबर को भारत की दिशा और दशा बदलने में अपनी गहरी छाप छोड़ी।
18 नवंबर को जन्मे महान व्यक्तित्व
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कमलनाथ (जन्म: 1946)
भारतीय राजनीति में कमलनाथ एक ऐसा नाम है जिसे संगठन क्षमता, संसदीय अनुभव और प्रशासनिक दक्षता के लिए जाना जाता है। नौ बार लोकसभा सांसद रहने का रिकॉर्ड और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल उनके नेतृत्व कौशल को दर्शाता है। उद्योग, वाणिज्य और शहरी विकास जैसे मंत्रालयों में उनकी नीतियों का व्यापक प्रभाव देखा गया। कमलनाथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की रीढ़ माने जाते हैं और देश की आर्थिक प्रगति में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा है।
सी. एन. बालकृष्णन (जन्म: 1934)
सी. एन. बालकृष्णन केरल की राजनीति में एक सादगीपूर्ण और जनसमर्पित नेता के रूप में जाने जाते थे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता होने के बावजूद उनका जीवन बिलकुल साधारण रहा। उन्होंने शराबमुक्ति अभियान, वित्तीय सुधारों और सामाजिक उत्थान जैसे विषयों पर लंबे समय तक कार्य किया। केरल सरकार में मंत्री रहते हुए उन्होंने भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन और समाज के कमजोर वर्गों की सहायता पर विशेष ध्यान दिया।
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मधुकर हीरालाल कनिया (जन्म: 1927)
भारत के 23वें मुख्य न्यायाधीश एम.एच. कनिया भारतीय न्यायपालिका के उन स्तंभों में गिने जाते हैं जिन्होंने संविधान की गरिमा को सर्वोच्च स्थान दिया। न्यायिक सुधारों, पारदर्शिता और न्याय की गति बढ़ाने के लिए उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। उन्होंने कई ऐसे महत्वपूर्ण फैसले दिए जिन्होंने भारत की न्यायिक संरचना को नई दिशा प्रदान की। उनकी निष्पक्षता और दृढ़ता आज भी न्यायपालिका के लिए प्रेरणा है।
बटुकेश्वर दत्त (जन्म: 1910)
क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त का नाम भारत की स्वतंत्रता संग्राम की उस धारा से जुड़ा है जिसमें त्याग, साहस और राष्ट्रप्रेम चरम पर था। भगत सिंह के साथ दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंककर उन्होंने अंग्रेजों को संदेश दिया कि भारत अब चुप नहीं रहेगा। जेल में अमानवीय यातनाएँ झेलने के बावजूद उनका हौसला टूट नहीं पाया। उनका पूरा जीवन युवाओं के लिए अदम्य साहस की मिसाल है।
वी. शांताराम (जन्म: 1901)
भारतीय सिनेमा के दिग्गज निर्देशक एवं फिल्मकार वी. शांताराम ने फिल्मों को मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक संदेश देने का माध्यम बनाया। ‘दुनिया ना माने’, ‘दो आंखें बारह हाथ’ और ‘झनक झनक पायल बाजे’ जैसी फिल्मों ने न केवल भारतीय सिनेमा को विश्व पटल पर पहचान दिलाई बल्कि समाज में जागरूकता भी फैलाई। शांताराम का योगदान भारतीय फिल्म उद्योग के विकास में मील का पत्थर माना जाता है।
तिरुमलाई कृष्णामाचार्य (जन्म: 1888)
योग के जनक कहे जाने वाले कृष्णामाचार्य आधुनिक योग परंपरा के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने पतंजलि योग, प्राणायाम, आयुर्वेद और वैदिक विद्या को जोड़कर एक नई पद्धति विकसित की। उनके शिष्यों ने योग को वैश्विक पहचान दिलाई। उन्हें ‘योग का पिता’ कहा जाता है। शरीर-मन-आत्मा के संतुलन की उनकी अवधारणा आज भी विश्वभर के योग साधकों को प्रेरित करती है।
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