श्रीनगर (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) में ड्यूटी के दौरान हुए हादसे में बिहार के सारण जिले का लाल, सेना का जवान छोटू शर्मा शहीद हो गया। मंगलवार को दिघवारा प्रखंड के पिपरा गंगा घाट पर उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया। गंगा किनारे उमड़ी भीड़ में हर आंख नम थी और वातावरण भारत माता की जय, वंदे मातरम व “शहीद छोटू शर्मा अमर रहे” के नारों से गूंज उठा।
शहीद छोटू शर्मा का पार्थिव शरीर जैसे ही उनके पैतृक गांव बेला शर्मा टोला पहुंचा, जनसैलाब उमड़ पड़ा। ग्रामीणों ने तिरंगे में लिपटे पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित कर अंतिम विदाई दी। परिजन शव से लिपटकर रोते-बिलखते रहे, तो वहीं ग्रामीण उन्हें सांत्वना देने में लगे रहे। बाद में पिपरा गंगा घाट पर सैन्य जवानों ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया और उनके भतीजे ऋषभ ने मुखाग्नि दी।
2017 में बने सिपाही, श्रीनगर में थी तैनाती
छोटू शर्मा वर्ष 2017 में दानापुर आर्मी भर्ती से सेना में शामिल हुए थे। फिलहाल वे श्रीनगर में राष्ट्रीय राइफल की 24वीं बटालियन में सिपाही के पद पर तैनात थे। शनिवार की शाम करीब तीन बजे ड्यूटी के दौरान सैनिक वाहन से उतरते समय उनकी रायफल से अचानक गोली चल गई, जो सिर में लगने से उनकी मौके पर ही मौत हो गई।
चार भाइयों में सबसे छोटे, पिता का साया बचपन में ही छिना
शहीद चार भाइयों में सबसे छोटे थे। उनकी तीन बहनें भी हैं। एक भाई अपाहिज है और दो भाई प्राइवेट नौकरी करते हैं। बचपन में ही पिता का निधन हो गया था। मां कामिनी देवी ने तमाम कठिनाइयों में बच्चों को पाला। मेहनत और लगन से छोटू ने सेना में जगह बनाई और घर की आर्थिक स्थिति सुधरी।
9 मई को हुई थी शादी, 4 महीने में टूटा बंधन
परिवार की खुशियां धीरे-धीरे लौट रही थीं कि इसी बीच 9 मई को छोटू का विवाह धूमधाम से सुष्मिता से हुआ। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। शादी के महज चार महीने बाद ही सुष्मिता का सुहाग उजड़ गया। शहीद की विधवा मां और पत्नी की हालत देख पूरा गांव गमगीन है।
नेताओं और अफसरों ने दी श्रद्धांजलि
सोमवार की शाम पटना एयरपोर्ट पर उनका पार्थिव शरीर लाया गया। वहां से दानापुर छावनी ले जाया गया, जहां उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय समेत कई नेताओं और अफसरों ने शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की। मंगलवार सुबह उनका शव सेना के वाहन से पैतृक गांव पहुंचा।
छोटू शर्मा की शहादत ने जहां पूरे गांव और जिले को गर्व से भर दिया, वहीं उनकी असमय मौत से मातम भी छा गया है। गांव-गांव में अब लोग उन्हें “वीर सपूत” के नाम से याद कर रहे हैं।
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