#कवि #साहित्य #लेखक

व्यापक बृह्म सदा अविनाशी

दैहिक, दैविक, भौतिक तापा,कलिकाल सबहिं कहुँ व्यापा। सत्य प्रसंग असत्य कहि देहीं,औरन कहँ अति मतिभ्रम देहीं। सज्जन साधु सन्त मत…

2 years ago

कर्तव्य करिए, फल की इच्छा नहीं

आस्था और विश्वास की ताक़त सेटूटते हुये सम्बंध बार बार जुड़ जाते हैं,लोगों की उजड़ी अंधियारी दुनिया मेंयही हरियाली प्रकाश…

2 years ago

शीतऋतु

डाक हिमालय की बर्फीलीलेकर चलीं हवाएं,सुबह-शाम मैदानों कीसांकल चढ़कर खाकाएं। क्रूर-निर्दयी से मर्माहतबार-बार पिस-पिस केअंधियारे की बांहों मेंचांदनी कसमसा सिसकेकुहरे…

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पैसा : कितने नाम बदलता है

दादा बड़ा न भैया,सबसे बड़ा रुपैया ।सब पैसे का खेल है,और कछू ना भैया ।। मंदिर मे दिया जाऊँ तोहमें…

2 years ago