आवास से नकदी मिलने के मामले में आंतरिक जांच की वैधता को दी चुनौती
नई दिल्ली, (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने बुधवार को न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा द्वारा दायर उस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें उनके सरकारी आवास से नकदी बरामद होने की घटना के बाद शुरू हुई आंतरिक जांच की कानूनी वैधता को चुनौती दी गई थी।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की दो सदस्यीय पीठ ने सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया कि यदि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को यह विश्वास हो कि किसी न्यायाधीश द्वारा कदाचार किया गया है, तो वह इस विषय में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को अवगत करा सकते हैं। पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 124(4) और 217 के तहत न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया एक संवैधानिक प्रक्रिया है, और उसमें कोई भी हस्तक्षेप अत्यंत सावधानी से किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता न्यायमूर्ति वर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि इस प्रकार की आंतरिक जांच, बिना किसी संवैधानिक प्रक्रिया के, न्यायपालिका की स्वतंत्रता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है। सिब्बल ने तर्क दिया कि इस तरह की प्रक्रिया न्यायिक अधिकारियों के अधिकारों और प्रतिष्ठा पर सीधा हमला है। उन्होंने अदालत से मांग की कि जांच को अवैध घोषित किया जाए।
वहीं, केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि किसी भी न्यायाधीश के विरुद्ध अगर कोई संदेह उत्पन्न होता है, विशेष रूप से जब मामला गंभीर हो—जैसे कि आवास से संदिग्ध नकदी की बरामदगी—तो न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने हेतु आंतरिक प्रक्रिया आवश्यक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया न तो दंडात्मक है और न ही न्यायिक पद से हटाने की प्रक्रिया का स्थानापन्न।
पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि वह इस संवेदनशील मामले में उचित विचार के बाद अपना निर्णय सुनाएगी।
गौरतलब है कि कुछ महीने पहले न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर तलाशी के दौरान संदिग्ध नकदी मिली थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट की प्रशासनिक समिति ने एक प्रारंभिक आंतरिक जांच की शुरुआत की थी।
अब सभी की नजर सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर टिकी है, जो न्यायपालिका की आंतरिक प्रक्रिया और न्यायाधीशों की गरिमा के बीच संतुलन की दिशा तय कर सकता है।
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