
नई दिल्ली,(राष्ट्र की परम्परा डेस्क)उच्चतम न्यायालय देश में वकीलों को जांच एजेंसियों द्वारा तलब किए जाने की घटनाओं पर गंभीर रुख अपनाते हुए अब इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान मामले में सुनवाई करने जा रहा है। अदालत इस संवेदनशील विषय पर 21 जुलाई 2025 को सुनवाई करेगी।
यह मामला उन वकीलों से जुड़ा है जो जांच एजेंसियों की ओर से कानूनी राय देने या किसी पक्ष की ओर से पेश होने जैसे अपने पेशेगत दायित्व निभा रहे थे, लेकिन इसके बावजूद उन्हें समन या पूछताछ के लिए बुलाया गया। इस पर देशभर के वरिष्ठ अधिवक्ताओं और वकीलों के संगठनों ने चिंता जताई है, जिसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। कोर्ट ने इससे पहले भी टिप्पणी की थी कि वकीलों को उनके पेशे के कारण परेशान करना न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया के लिए खतरा है।
वकीलों में बढ़ती चिंता
कई वरिष्ठ वकीलों का कहना है कि अगर किसी वकील को किसी मामले में सिर्फ राय देने या किसी पक्ष की पैरवी करने पर जांच एजेंसियां निशाना बनाती हैं, तो यह संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पेशेगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है। वकील समुदाय ने इस रुख को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमजोर करने वाला बताया है।
बार काउंसिल का रुख
बार काउंसिल ऑफ इंडिया और अन्य राज्यों की बार काउंसिलों ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि यदि यह प्रवृत्ति बढ़ी, तो स्वतंत्र और निष्पक्ष न्याय प्रणाली को गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
क्या है मामला
बीते कुछ महीनों में कुछ चर्चित मामलों में वकीलों को नोटिस भेजने या पूछताछ के लिए बुलाए जाने की खबरें सामने आई थीं। इनमें कुछ ऐसे वकील भी शामिल हैं जो सरकार के खिलाफ मामलों में पक्षकारों की पैरवी कर रहे थे।
अब इस पूरे मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला वकील समुदाय और देश की न्याय व्यवस्था के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है। 21 जुलाई की सुनवाई पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं।
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