अम्बर से उड़ उड़कर भँवरा
जब धरती पर आता है,
देख देख सुनहरे बाग को,
भ्रमर वहीं मँडराता है,
कुसुमित पुष्पों की सुरभित,
कलियों पर जा जाकर,
प्रेमगीत गुनगुनाता है, हृदय से
निकला मधुर गीत गाकर,
छुप जाता है अक्सर भँवरा,
कलियों में लजा लजाकर।
आया वसन्त प्रेम गीत गाकर।
गेंदा, गुलमेहंदी गमकें, रात में
सुस्तायें महक बिखराकर,
वन उपवन एहसास दे रहे,
बहती पवन मधुरम् पावन,
चहकें चिड़ियाँ प्यारी सी बेला में
आदित्य गीत गा गाकर,
वीणावादिनि का सरगम, आया
यौवन श्रृंगार सजा सजाकर।
आया वसन्त प्रेम गीत गाकर।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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