सुप्रीम कोर्ट का संवेदनशील हस्तक्षेप-आवारा कुत्तों से सुरक्षा व कबूतरों पर अहम् जजमेंट

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर भारतीय न्यायपालिका की प्रतिष्ठा पारदर्शिता व निष्पक्षता का गुणगान यूं ही नहीं किया जाता, यहां मानवीय संवेदनशीलता के साथ- साथ-साथ मूक बघिर जीवों की सुरक्षा करने के साथ साथ संवेदनशीलता, व उनकी हिंसा से मानवीय जीवो को बचाने उनकी सुरक्षा करने के लिए स्वतः संज्ञान भी लिया जाता है।मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि भारत माता की मिट्टी में पैदा हुए हर व्यक्ति में सृष्टि में पैदा हुए जीवों के प्रति गहरी संवेदनाओं संवेदनशीलता गुण हृदय में भरा रहता है जो किसी न किसी रूप में झलक जाता है, ऐसा ही हमने देखे कि आवारा कुत्तों के संबंध में स्वयंसेवी संगठन व माननीय न्यायालय तथा कबूतरों के संबंध में एक संगठन व माननीय न्यायालय क़े केस में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 11 अगस्त 2025 को अहम् फैसला दिया है।एक बच्ची को आवारा कुत्तों द्वारा काटने पर उसकी मृत्यु हो गई इसके स्वतः संज्ञान पर बेंच नें लावारिस कुत्तों की समस्या से जूझ रहे दिल्ली को लेकर बड़ा आदेश दिया है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा है कि 8 सप्ताह के भीतर सभी लावारिस कुत्तों को पकड़कर ‘डॉग शेल्टर’ में शिफ्ट किया जाए व इन कुत्तों को वापस नहीं छोड़ा जाएगा। दिल्ली में रोहिणी के पास पूठ कलां में आवारा कुत्ते के काटने से रेबीज के कारण 6 साल की बच्ची की मौत के बाद 28 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या का स्वत:संज्ञान लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर प्रकाशित एक मीडिया रिपोर्ट का जिक्र करते हुए इसे ‘बेहद परेशान करने वाला और चिंताजनक बताया था। अदालत ने कहा था कि शहर और उसके बाहरी इलाकों में हर दिन सैकड़ों कुत्तों के काटने की खबरें आ रही हैं। कुत्तों के काटने से रेबीज हो रहा है।आमतौर पर बच्चे और बुजुर्ग इसके शिकार हो रहे हैं।सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, एमसीड और एनडीएमसी को निर्देश दिया है कि वे तत्काल प्रभाव से आवारा कुत्तों को सभी इलाकों से पकड़ना शुरू करें,कोर्ट ने कहा कि यह कदम बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है, जिससे वे बिना किसी डर के पार्कों और सड़कों पर जा सकें,कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि पकड़े गए कुत्तों को किसी भी परिस्थिति में वापस उन्हीं इलाकों में नहीं छोड़ा जाएगा ,इस आदेश का मकसद राष्ट्रीय राजधानी को आवारा कुत्तों से मुक्त करना है।सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार, एमसीड और एनडीएमसी को 8 हफ्तों के अंदर करीब 5000 कुत्तों के लिए शेल्टर होम बनाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि इन शेल्टर्स में कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण के लिए पर्याप्त कर्मचारी होने चाहिए। कोर्ट ने अधिकारियों को इस बुनियादी ढांचे को तैयार करने और नियमित अंतराल पर इसकी संख्या बढ़ाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह कार्रवाई इसलिए जरूरी है क्योंकि जब तक शेल्टर बनते हैं, तब तक और लोग कुत्तों के काटने का शिकार हो सकते हैं। दूसरी ओर 11 अगस्त 2025 को ही मुंबई में कबूतरों को दाना खिलाने पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है और याचिकाकर्ताओं से हाईकोर्ट जाने को कहा है। इतना ही नहीं माननीय पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ भीड़ द्वारा दादर कबूतरखाना को जबरदस्ती खोलने और कबूतरों को दाना डालने की घटना पर गुस्सा जाहिर करते हुए कहा है कि जो लोग भी, इस तरह कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर रहे हैं, इन्हें गिरफ्तार किया जाए और उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए।इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लेने के 14 दिनों के भीतर निर्णय की फास्ट ट्रैक प्रवृत्ति जनहित की आपात समस्या निदान का सटीक उदाहरण सराहनीय है।
साथियों बात अगर हम सुप्रीम कोर्ट द्वारा आवारा कुत्तों संबंधित स्वतः संज्ञान पर एक बेंच द्वारा दिए गए जजमेंट की करें तो, यह संज्ञान 28 जुलाई 2025 को लिया था। उस दिन कोर्ट ने टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित “सिटी होउंडेड बाय स्ट्रास, किड्स पे प्राइस ” शीर्षक वाले समाचार लेख को आधार मानकर मामला अपने संज्ञान में लिया और इसे “सु मोटो रिट पेटिशन (सिविल) नों. 5/2025- ‘सिटी होउंडेड बाय स्ट्रास, किड्स पे प्राइस”के रूप में रजिस्टर्ड किया था। कोर्ट ने दिल्ली सरकार व नगर निकायों (एमसीडी) को 11 अगस्त 2025 तक जवाब दाखिल करने का निर्देश भी जारी किया था। जिसकी मुख्य बातें इस प्रकार है।(1) तत्काल कारवाई का आदेशसुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया किदिल्ली-एनसीआर (दिल्ली-एनसीआर) सहित नोएडा,गुरुग्राम,और गाजियाबाद के सभी स्थानीय निकायों को आवारा कुत्तों को तुरंत पकड़कर शेल्टर में ले जाने की प्रक्रिया तुरंत प्रारंभ करनी चाहिए, चाहे वे नसबंद (स्टेरिलीज्ड) हों या नहीं। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि एक भी कुत्ता सार्वजनिक स्थानों पर वापस नहीं छोड़ा जाएगा।(2)शेल्टर्स व संरचना की व्यवस्था-कोर्ट ने दिल्ली सरकार,एमसीड औरएनडीएमसी को निर्देशित किया कि वे आने वाले आठ सप्ताह के भीतर पर्याप्त कुत्ते शेल्टर तैयार करें, जहां नसबंदी,टीकाकरण, रखरखाव,और संरक्षित परिवेश सुनिश्चित किया जा सके। इन शेल्टरों में पिछले निर्णयों के विपरीत, सीसीटीवी लगाए जाएंगे और पर्याप्त कर्मचारी लगाए जाएंगे जिससे कोई कुत्ता बच न जाए। (3) अवरोध करने वालों के खिलाफ कार्रवाई-कोर्ट ने सख्त चेतावनी दी कि अगर कोई व्यक्ति या संगठन इस कार्य में बाधा डालता है-जैसे किशेल्टर स्थापित करने या कुत्ते पकड़ने में-तो उसके खिलाफ न्यायिक कार्रवाई (कानूनी कदम) की जाएगी। यह स्पष्ट किया गया कि यह आदेश सार्वजनिक हित (लार्जर पब्लिक इंटरेस्ट) में हैं, और“इनफाट्स एंड यंग चिल्ड्रन, नॉट एट एनी कॉस्ट, शुड fall प्रेय टू रबीज”यह संदेश पूरी सख्ती के साथ दिया गया। (4) हेल्पलाइन और टीकाकरण व्यवस्था-कोर्ट ने आदेश दिया कि एक डॉग-बाइट हेल्पलाइन एक सप्ताह के भीतर स्थापित की जाए, जिस पर लोग कुत्ते काटने की घटनाओं की सूचना दे सकें। इसके साथ ही, राज्य सरकार को टीकों की उपलब्धता, स्टॉक, और इससे संबंधित जानकारी नियमित रूप से उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया। (5) एबीसी रूल्स का विरोध-सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट आक्षेप जताया कि एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) नियम, जो नसबंद और टीकाकृत कुत्तों को उनके पहले स्थान पर वापिस छोड़ने की परंपरा स्पष्ट रूप से “अबसूर्ड”और“ अनरेसनेबल” है।अदालत ने कहा,“फॉरगेट द रूल्स एंड फेस रियलिटी”, यह कहते हुए कि *समाज को आवारा कुत्तों से मुक्त होना चाहिए,चाहे वे नसबंद हों या नहीं। (6) लोक–हित की प्राथमिकता- कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जिसमें लोकहित (पब्लिक इंटरेस्ट) को सर्वोच्चता दी गई। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से एनीमल राइट्स पर आधारित संगठनात्मक हस्तक्षेप को अस्वीकार कर दिया और कहा कि इस विषय में केवल विशेषज्ञ सलाह (अमिकस कुरिए) और सरकारी पक्ष की सुनवाई की जाएगी-नॉट एनिमल एक्टिविस्ट्स ओर अदर पेटिशनर्स। (7) कानूनी स्थिति-आदेश स्पष्ट रूप से बताता है कि यह मामला एक सु मोटो रिट पेटिशन है, जिसका विषय बच्चों और बुजुर्गों पर आवारा कुत्तों का जानलेवा खतरा है, और टाइम्स ऑफ इंडिया की समाचार रिपोर्ट को आधार बनाकर अदालत ने इस मामले में हस्तक्षेप किया। यह निर्णय न्यायिक उत्सर्जन (जुडीशल इंटरवेंशन) का एक उदाहरण है, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने समस्या की गम्भीरता को देखते हुए सक्रिय भूमिका निभाई।
साथियों बात अगर हम 11 अगस्त 2025 को ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा कबूतरों को दान देने संबंधी जजमेंट की करें तो,सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि कबूतरों को खाना खिलाने से गंभीर स्वास्थ्य संबंधी खतरे पैदा होते हैं। साथ ही, कोर्ट ने बृहन्मुंबई नगर निगम को उन लोगों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने का निर्देश दिया जो निगम के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए मुंबई के ‘कबूतरखानों’ में कबूतरों को खाना खिलाना जारी रखते हैं। माननीय दो जजों की पीठ ने कहा,”इस न्यायालय द्वारा समानांतर हस्तक्षेप उचित नहीं है। याचिकाकर्ता आदेश में संशोधन के लिए हाईकोर्ट जा सकता है।पीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ भीड़ द्वारा दादर कबूतरखाना को जबरदस्ती खोलने और कबूतरों को दाना डालने की घटना पर गुस्सा जाहिर करते हुए कहा है कि जो लोग भी, इस तरह कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर रहे हैं, इन्हें गिरफ्तार किया जाए और उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आवारा कुत्तों पर स्वतःसंज्ञान के 14 दिनों में सुप्रीम न्याय की ऐतिहासिक गूँज-कबूतरों को दाना खिलाने पर भी सुप्रीम निर्णय,सुप्रीम कोर्ट का संवेदनशील हस्तक्षेप-आवारा कुत्तों से सुरक्षा व कबूतरों पर अहम् जजमेंट,सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतःसंज्ञान लेने के 14 दिनों में निर्णय की फास्ट ट्रैक प्रवृत्ति जनहित की आपात समस्या निदान का सटीक उदाहरण सराहनीय।

-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318

Editor CP pandey

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