November 22, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

आत्मविश्वास

आत्मविश्वास से ही विचारों
की स्वाधीनता प्राप्त होती है,
इसके कारण महान कार्यों के
सम्पादन में सफलता मिलती है।

इसी के द्वारा आत्मरक्षा होती है,
जो आत्मविश्वास से ओत प्रोत है,
उसे अपने भविष्य के प्रति किसी
प्रकार की चिन्ता नहीं रहती है।

परोपकार का अर्थ है दूसरों की
भलाई करना व सहायता करना,
जीविकोपार्जन के लिए विभिन्न
उद्यम करते हुए परहित कार्य करे।

यदि कोई दूसरे व्यक्तियों और
जीवधारियों की भलाई के लिए
प्रयत्‍‌न करता है तो ऐसे प्रयत्‍‌न
परोपकार की श्रेणी में आते है।

परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है,
मन, वचन और कर्म से परोपकार
की भावना से कार्य करने वाले
व्यक्ति संतों की श्रेणी में आते हैं।

जो व्यक्ति बिना किसी स्वार्थ
के दूसरों पर उपकार करते हैं,
देवतुल्य होने के साथ ही वे ही
सत्पुरुष कहे जा सकते हैं ।

परोपकार ऐसा कृत्य है जिससे
यदि शत्रु पर विपत्ति के समय
उपकार किया जाए तो उपकृत हो
वह भी सच्चा मित्र बन जाता है ।

चाणक्य के अनुसार जिनके हृदय में
परोपकार की भावना जागृत रहती है,
उनकी विपत्तियाँ भी दूर हो जाती हैं,
उन्हें धन व यश की प्राप्त होती है।

गोस्वामी तुलसीदास ने परोपकार
के विषय में कुछ ऐसे लिखा है कि,
परहित सरिस धरम नहिं भाई।
परपीड़ा सम नहिं अधमाई ॥

आदित्य दूसरे शब्दों में परोपकार
के समान कोई धर्म नहीं होता है,
अनूठा और अनुपम कर्तव्य होता है
परमात्मा भी जिस पर ख़ुश होता है।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ ‎