नईदिल्ली एजेंसी। 7 फरवरी, 2002 भारत के इतिहास का एक काला अध्याय है, जिसने हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की भावना को आग लगा दी थी। 27 फरवरी पूरे देश के लिए तारीख ही नहीं बल्कि इस तारीख का हमारे देश के अतीत से काला रिश्ता है। इसी दिन गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एक डब्बे को आग के हवाले कर दिया गया था, जो कारसेवकों से भरी थी। गोधरा कांड के सजायाफ्ता दोषी को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। गुजरात सरकार के कड़े विरोध के बावजूद गोधरा कांड के उम्रकैदयाफ्ता दोषी फारुक को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है।
फारुक 2004 से जेल में है और 17 साल जेल में रह चुका है। लिहाजा उसे जेल से जमानत पर रिहा किया जाए। दोषी पर पत्थरबाजी का मामला है। सुनवाऊ के दौरान जमानत का विरोध करते हुए गुजरात सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये महज पत्थरबाजी नहीं थी। ये जघन्य अपराध था। जलती ट्रेन से लोगों को बाहर नहीं निकलने दिया गया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह महज पत्थरबाजी का केस नहीं है।
बता दें कि 27 फरवरी 2002 का दिन हमारे स्वतंत्र धर्मनिरपेक्ष देश में सुबह 7:43 पर गुजरात के गोधरा स्टेशन पर 23 पुरुष और 15 महिलाओं और 20 बच्चों सहित 58 लोग साबरमती एक्सप्रेस के कोच नंबर S6 में जिंदा जला दिए गए थे। उन लोगों को बचाने की कोशिश करने वाला एक व्यक्ति भी 2 दिनों के बाद मौत की नींद सो गया था।
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