आजकल ज़ूम मीटिंग में मिलकर,
हम वेटरन्स के चेहरे खिल जाते हैं,
बातें ज़्यादा भले नहीं कर पायें हम,
कुशल क्षेम तो सबकी जान जाते हैं।
कुछ ले न पायें या दे न पायें, मित्रों
के साथ अपना समय बिता पाते हैं,
शेष जीवन अब हमारा बोनस में है,
मिल कर इसे ख़ुशनुमा बना लेते हैं।
हम सब वेटेरंस को मिलकर थोड़ा
बहुत हँस बोल भी लेना चाहिये,
हममें से जिसकी हँसी ज़िन्दा है,
उन सबकी हस्ती अभी ज़िन्दा है।
वरना ज़्यादा सीरीयस लोग तो,
शायद अस्पताल में ही मिलते हैं,
जहाँ पहुँचकर वापस आकर शायद
हमारी आयु के कोई ही जी पाते हैं।
अच्छे लोगों के सत्संग से हमको
हमेशा हमें संजीवनी मिलती है,
हवा जब भी फूलों से गुजरती है,
वह ख़ुशबू से महकने लगती है।
बीत जाता है जीवन सारा यह जानने
में कि हमें वास्तव में जानना क्या है,
हमें तो यह तक नहीं मालूम होता कि,
जो पास में है, उसका करना क्या है।
जो कुछ बातें ख़ासतौर से हम लोग
मिलकर सबसे मीटिंग में बतलाते हैं,
कभी कभी एक डेढ़ घंटे में ही जीवन
की सच्चाई एवं मूल्य समझ पाते हैं।
वरचुअली मिलकर यह पता चलता है,
मेलमिलाप की घड़ी भाग्य से मिली है,
इन घड़ियों को अभिशाप नहीं समझें,
आदित्य ये वरदान जैसी मिलती हैं।
डा. कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’ ‘विद्यावाचस्पति’
लखनऊ
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