
दिल्ली में तीन दिवसीय भव्य आयोजन, कूटनीतिक हलकों में हलचल
नई दिल्ली(राष्ट्र की परम्परा डेस्क) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है और इस ऐतिहासिक अवसर को चिह्नित करने हेतु संघ द्वारा एक भव्य आयोजन का आयोजन 26 से 28 अगस्त तक दिल्ली के विज्ञान भवन में किया जा रहा है। यह कार्यक्रम केवल एक सांस्कृतिक या वैचारिक सभा नहीं, बल्कि संघ की ऐतिहासिक यात्रा, वर्तमान रणनीति और भविष्य की दिशा पर गहन मंथन का मंच बनेगा।
संघ की 100 वर्षों की यात्रा : एक वैचारिक संकल्प
1925 में डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा नागपुर में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश में सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी चेतना को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस शताब्दी समारोह में संघ की वैचारिक पृष्ठभूमि, संगठनात्मक विस्तार, सेवा कार्य, और राजनीतिक प्रभाव पर विशेष चर्चा की जाएगी।
संघ से जुड़े कई अनुषांगिक संगठनों – भारतीय मजदूर संघ, विद्या भारती, विश्व हिंदू परिषद, सेवा भारती, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद आदि – की सहभागिता इस आयोजन को और व्यापक स्वरूप दे रही है।
आयोजन की रूपरेखा तीन दिवसीय इस कार्यक्रम में विभिन्न सत्रों के माध्यम से भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण, सामाजिक समरसता, राष्ट्रवाद, और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदुत्व की भूमिका जैसे विषयों पर मंथन किया जाएगा। देश के प्रमुख बुद्धिजीवी, शिक्षाविद्, सामाजिक कार्यकर्ता, धर्माचार्य और नीति-निर्माता इसमें भाग लेंगे।
RSS के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले मुख्य सत्रों को संबोधित करेंगे। कूटनीतिक आयाम और वैश्विक दृष्टिकोण
इस आयोजन को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी रुचि देखने को मिल रही है। कई देशों के दूतावासों और राजनयिक प्रतिनिधियों को आमंत्रण भेजा गया है, जिनमें से कुछ की अनुपस्थिति और कुछ की सहमति चर्चा का विषय बन गई है।
अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, इज़राइल और कुछ अफ्रीकी देशों ने प्रतिनिधित्व भेजने की पुष्टि की है, जबकि कुछ इस्लामिक देशों और यूरोपीय संघ के कुछ सदस्य देशों ने दूरी बनाए रखी है।
विशेषज्ञ इसे RSS की वैश्विक छवि निर्माण की रणनीति के रूप में देख रहे हैं, जो भारत के उदय के साथ-साथ अपनी वैचारिक पहचान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा है।
राजनीतिक और सामाजिक महत्वRSS के इस कार्यक्रम को 2026 में संभावित चुनावी रणनीतियों और राष्ट्रीय मुद्दों पर विमर्श के लिहाज से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। विशेषकर ऐसे समय में जब भारत सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्तर पर परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, RSS की भूमिका और दृष्टिकोण का यह सार्वजनिक प्रस्तुतीकरण कई मायनों में संकेत देने वाला हो सकता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी समारोह एक ऐतिहासिक पड़ाव है, जो न केवल इसकी विचारधारा की निरंतरता को रेखांकित करता है, बल्कि बदलते भारत और वैश्विक परिवेश में इसकी भूमिका की नई परिभाषा भी प्रस्तुत करता है। यह आयोजन भारत के वैचारिक विमर्श में एक नया अध्याय जोड़ने जा रहा है, जिसकी गूंज आने वाले वर्षों तक सुनाई देगी।
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