आज़मगढ़ ( राष्ट्र की परमपरा )
परम संत पुजारी का जन्म बिहार के मुंगेर जिला के एक गांव में एक विश्वकर्मा परिवार में हुआ था। महाराज का नाम पहले लोधू था उम्र लगभग 100 वर्ष थी। साधू समाज में आने पर इनका नाम सहदेव दास हुआ।इनकी मां धर्म परायण थी, इनके माता-पिता साधु-संतों की सेवा करते थे और आदर सत्कार भी करते थे।
कुछ समय में ही महाराज ने आधात्यम का रास्ता चुन लिया और भगवान का जप करना शुरू कर दिया। इसी के साथ उन्होने अपना घर 12/13 वर्ष की अवस्था में ही त्याग दिया।
ऐसा माना जाता है कि सहदेव दास महाराज ने उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद के मुहम्मदपुर गांव आने के बाद प्राचीन शिव मंदिर मुहम्मदपुर पर पुजारी हुए।
यह 1948 के पहले आए थे। सहदेव दास महाराज कई भाषाओं की जानकारी रखते थे। गुरु नानक के पुस्तक पढ़ने का शौक था ।
भाषा में पंजाबी ,बांग्ला ,उर्दू ,हिंदी, संस्कृत की अच्छी जानकारी थी।
पुजारी बाबा एक शिल्पकार भी थे। पहले मिट्टी से भगवान राम कृष्ण सरस्वती मां दुर्गा की प्रतिमा भी बनाते थे।
ऐसा माना जाता है कि महाराज को भगवान भोलेनाथ को ही निहारते रहते थे। महाराज गुरु नानक को बहुत मानते थे और उनकी पुस्तक बराबर पढ़ते थे।
पुजारी बाबा के बारे में बताया जाता है कि निश्चल स्वभाव, स्वार्थ से परे, एक टाइम भोजन करना, बीन बजाने के शौकीन और भगवान की सेवा में बराबर लगा रहना यह उनकी आदत में थी।
पुजारी बाबा का शव गांव मोहल्ले में गाजा बाजा के साथ शव यात्रा निकाली गई ।लोग नमन करते गए और पुष्प अर्पित करते गए।
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