December 23, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

काव्य कल्पना कवि की रचना

मेरी रचना, मेरी कविता

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कवि हृदय व्यथित हो जाता है,
सामाजिक झँझावातों से,
कल्पना लोक, संभ्रमित करे,
रचना रूपी ख़्यालातों से ।

सरगम के सप्त स्वरों का लय,
शुभ इंद्र धनुष के सात रंग,
सप्त ऋषि बन कर बिचरें,
कवि मन का होता ध्यान भंग।

सात समुंदर के पार तलक,
कल्पना लोक का विचरण हो,
सात महाद्वीपों की महिमा,
कवि की रचना की शरण में हो।

सात दिनो की गाथा गाये,
सात अजूबे दुनिया के,
जैसे आकर्षण बन जायें,
सप्तसरोवर सप्तऋषि के।

द्युत क्रीड़ा,मांसाहारी,मद्दपान,
शिकारवृत्ति, वेश्या गमनम,
चौर्यकरण, पर-दारा रमणम,
सप्त व्यसन कविता रचनम।

आयु, प्राण, प्रतिष्ठा, प्रज्ञा, सातों
प्रतिफल हैं कवि की रचना में,
द्रव्य, जीव व ब्रह्मचर्य वृत, कवि
गाता है गायत्री की महिमा में।

कल्पना लोक का विचरण कर,
कविता का लेखन सरपट दौड़े,
तब भाव, कुभाव ग्रसित हो कर,
उद्वेलित मन कवि का भी डोले।

शीर्षक कविता का मिल जाये,
रचना धर्मिता खिल खिल जाये,
‘आदित्य’ कहें संयोग सुलभ,
जब गीत विरह से बन जाये ।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य