विद्यार्थी जीवन में साइंस पढ़ता था,
कुछ साल साइंस का शिक्षक भी था
फिर पोस्ट ऑफ़िस में सर्विस मिली
और वहीं से फिर सेना में चला गया।
छत्तीस साल से ज़्यादा सेना में सेवा,
वहीं रहते स्नातक और फिर प्राचीन
भारतीय इतिहास में स्नातकोत्तर कर
अधूरी शिक्षा पूरी का वृत पूर्ण किया।
सेवा निवृत्ति के बाद समाज सेवा
में पिछले एक दशक ज़्यादा से हूँ,
लिखने लिखाने का शौक़ शुरू से है
और अब भी वह शौक़ बरकरार है ।
धार्मिक प्रवृत्ति है, ईश्वर में आस्था व
विश्वास है, ईश्वर भक्ति बचपन से
ही पैत्रिक रूप में मिली है, सब पर
विश्वास, सबका आदर स्वभाव में है।
घर की खेती किसानी के कार्य भी
ख़ूब किया करता था एक समय,
समाज सेवा, दूसरों की मदद करने
की प्रवृति मौजूद रहती है हर समय।
हाँ शायद मित्र बहुत कम ही हैं मेरे,
मेरे दिल से कोई दुश्मन नही है मेरे,
सबका साथ व सबके सहयोग की
भावना भी सदा मन में रहती है मेरे ।
सेहत की फ़िक्र भी मुझे रहती ही है,
रोज़ सुबह एक घंटे का टहलना अभी
भी विधिवत होता है, योग अभ्यास व
प्राणायाम भी कभी कभी होता है ।
आजकल काफ़ी समय से कवितायें
लगभग रोज़ लिखता हूँ, पर हाँ मैं
किसी की कविता चुरा कर अपने
नाम से कभी प्रसारित नहीं करता हूँ।
प्रात: क़ालीन एक शुभ संदेश भी
सोशल मीडिया के सभी जाने
अनजाने मित्रों को रोज़ भेजता हूँ,
मैं उनसे भी यही अपेक्षा करता हूँ ।
दूसरे की जाति, धर्म का सम्मान
हमेशा अपनी विचारधारा में है,
आप बताइये इस जीवनचर्या में
मेरी क्या कोई विविधता नहीं है?
कहीं कोई एक लय, एक तान की
नीरसता दृष्टि गोचर होती है क्या?
यदि ऐसा कुछ दिखता है तो आदित्य
हमें यह इंगित करने की भी कृपा करें।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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