पैसा ही सब कुछ नहीं होता है,
अब तक जो मिला वह बहुत है,
और कितना अधिक कमाएँगे,
इस उम्र में हम कितना खाएंगे।
भारत सरकार ने दिया बहुत है,
ज्यादा उम्मीद करना ही क्यों है,
कहीं ऐसा फिर बाद में न हो जाये,
बची खुची इज़्ज़त भी चली जाये।
नियति और ईमान हमारा बना रहे,
क़र्म हमारे मानवता से भरे हुये हों,
हक़ किसी और का कभी न छीनूँ मैं,
धोखा न किसी को दूँ जीवन में मैं।
चाहत अपनी धर्म की ख़ातिर हो,
कोई लड़ाई हो, न्याय की ख़ातिर हो,
जीत हार का हश्र सदा न्यायोचित हो,
जीवन देश धर्म के लिये सुरक्षित हो।
हे ईश तेरी सदकृपा का सहारा
हमको सदा यूँ ही मिलता रहे,
तेरे स्मरण और ध्यान में मेरा,
सारा समय यूँ ही कटता रहे।
तेरी आराधना व वन्दना ही
सदा ही हों मेरी क़र्मशाला,
दुर्मति हमारी हमसे दूर जाये,
आदित्य हृदय हो सुमतिशाला।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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