खुल कर हँसना, आत्म- सुकून दे,
मन में मन हँसना दिल को सुकून दे,
प्रेम सदा हँसता मुस्कुराता जीवन दे,
प्रेम सुखी जीवन की चाभी होती है।
सचेतन मन व सतर्क मस्तिष्क में,
ध्यान केन्द्रित हो तो फिर भय कैसा,
जीवन के सारे सपने सच हो जायें,
आत्मा व हृदय भी संतुष्ट हो जायें।
आत्मसंतोष तभी होता है जब आत्मा
हृदय से सुख संतोष का एहसास करे
हृदय सदा आँखों से यह एहसास करे
दुखी आत्माओं का दुःख भी दूर करें।
मानव प्रवृत्ति में दो अवयव ऐसे होते
जो हम कभी नही विस्मृत कर पाते,
नि:स्वार्थ प्रेम तथा विश्वास अटूट,
मुरझा जायें तो वापस न मिल पाते।
प्रेम और विश्वास सदा सौहार्द बढ़ाते
निंदा झूठ अकारण हमें दूर ले जाते
जो खुद में सुधार की आदत डाल ले
वह इंसान जीवन में सदा सुख पाते।
सम्बंध मधुर रख पाने से सारी
व्यथा व थकान मिट जाती है,
नाराजी निंदा जो भी हो आदित्य
सदा आपस की दूर हो जाती है।
डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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