जरा याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर ना आए, आईसीएचआर की ऐतिहासिक प्रदर्शनी का समापन

दिल्ली के बाहर देश में पहली बार गोरखपुर में लगी थी प्रदर्शनी

  • यह प्रदर्शनी गोरखपुर के लिए न सिर्फ गौरव बल्कि जागरण भी

गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के अमृता कला विथिका में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा स्वतंत्रता संघर्ष पर आधारित अनूठी प्रदर्शनी का मंगलवार को समापन हो गया। यह प्रदर्शनी नगरवासियों के लिए भी विशेष आकर्षण और कौतूहल का विषय बनी रही। इस प्रदर्शनी को देखने पर कोई भावुक हुआ तो कोई चिंतनशील।
प्रदर्शनी की विशेष बात यह भी रही कि इसमें न सिर्फ उच्च शिक्षा से जुड़े हुए लोगों ने रुचि दिखाई बल्कि शहर के तमाम स्कूलों के बच्चे भी इसके साक्षी बने।
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली का स्पष्ट उद्देश्य है कि हमारे गौरवपूर्ण स्वतंत्रता संग्राम के भुला दिए गए नायकों को विशेष रूप से रेखांकित करना। कहना न होगा कि बहुत सी ऐसी अनकही कहानी है। जिनका कहा जाना अभी बाकी है। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद उन्हें अनकही कहानियां को लेकर समाज में निकला है। इतिहास विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के साथ ही इस प्रदर्शनी का भी गोरखपुर विश्वविद्यालय में अनावरण हुआ।
कुलपति प्रोफेसर पूनम टंडन ने कहा कि यह प्रदर्शनी जन जागरूकता की दिशा में एक बड़ी पहल है। यह प्रदर्शनी गोरखपुर के लिए न सिर्फ गौरव बल्कि एवं आमजन को जागरूक करने की दिशा में भी मिल का पत्थर साबित हुई है। गोरखपुर विश्वविद्यालय भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, दिल्ली का आभारी है कि उन्होंने दिल्ली के बाहर इस प्रदर्शनी के लिए सबसे पहले गोरखपुर विश्वविद्यालय को चुना।
किताबों के बाहर भी हमारे इतिहास का विश्वसनीय दस्तावेज मौजूद है। जरूरत है उसे संकलित और संरक्षित करने की।
गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित कृतकार्य आचार्य प्रो. शिवशरण दास ने इस प्रदर्शनी पर अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मैं ऐसी प्रदर्शनी देखकर हतप्रभ रह गया। मेरा मानना है कि ऐसी प्रदर्शनी पूरे देश में दिखाई जानी चाहिए। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद और गोरखपुर विश्वविद्यालय का यह एक अद्भुत प्रयास है। 20 वर्ष से कम उम्र के सैकड़ो युवाओं का देश के लिए बलिदान विशेष रूप से भावविभोर करने वाला रहा। हमारे देश के महान क्रांतिकारियों की अनसुनी कहानियों को देश के सामने लाने का यह कार्य स्तुत्य है।
विनायक हॉस्पिटल के डॉ. सिद्धार्थ अग्रवाल ने इस प्रदर्शनी पर अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समाज के लिए इतिहास का प्रत्येक पहलू जानना आवश्यक है। यह प्रदर्शनी समाज की इस जरूरत को पूरी करने में सक्षम है। इसके लिए हम गोरखपुर विश्वविद्यालय और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के प्रति आभार प्रकट करते हैं।
प्रतिष्ठित नगरवासी अचिंत्य लाहिणी ने टिप्पणी करते हुए कहा कि भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद द्वारा गोरखपुर विश्वविद्यालय में आयोजित प्रदर्शनी गोरखपुर के लिये स्वतंत्रता के अमृत काल में एक नायाब तोहफ़ा था। इस प्रदर्शनी के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारियों तथा उनके बलिदान की अनसुनी गाथाएँ और एक से बढ़कर एक गुमनाम बलिदानियों और उनके अदम्य साहस को जानने का मौक़ा मिला। आज की युवा पीढ़ी के लिये यह प्रेरणा का स्रोत है और उन्हें राष्ट्रभक्ति के मार्ग पर चलने के लिये उचित उदाहरण है। ऐसी प्रदर्शनी शहर में लाने के लिये दोनों संस्थाएँ बधाई और साधुवाद के पात्र है। उम्मीद करते हैं की भविष्य में शहर के लोगो और मौके मिलेंगे।
प्रदर्शनी के अवलोकन के पश्चात प्रो.हिमांशु चतुर्वेदी ने कहा कि भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद द्वारा आयोजित राष्ट्रीय आंदोलन पर प्रदर्शनी, जिसका उद्घाटन डॉ. अम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र, नई दिल्ली में उपराष्ट्रपति द्वारा किया गया था, के आयोजन से गोरखपुर परिक्षेत्र के युवाओं और नागरिकों में भारी उत्साह रहा। अधिकांश के द्वारा प्रश्न किया गया कि इसमें दी गई जानकारियां पाठ्य पुस्तकों में क्यों नहीं मिलती? सभी के लिए यह राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास जानने का नवीन अनुभव था। इस प्रदर्शनी में दी गई जानकारी अभिलेखागारों में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर दी गई हैं।
इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. मनोज कुमार तिवारी ने कहा कि भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक पक्ष को समेटे हुए इस सप्तदिवसीय प्रदर्शनी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनेक पहलुओं को पूरी दक्षता के साथ प्रस्तुत किया है। इस प्रदर्शनी से पूर्वांचल की जनता को भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन और उसके नायकों, अल्प ज्ञात नायकों, घटनाओं इत्यादि को सरलता के साथ चित्रों के माध्यम से समझने का एक रोचक और ज्ञानवर्धक अवसर प्राप्त हुआ। इस प्रदर्शनी के माध्यम से हमारे विद्यार्थियों को यह पता चला कि स्वतंत्रता की बलिवेदी पर राष्ट्र की मुक्ति के लिए कैसे 9 साल, 12 साल, 15 साल तक के बच्चों ने अपना बलिदान किया. इससे हमारे विद्यार्थियों में राष्ट्र प्रथम की भावना का विकास होगा। स्वतंत्रता के महत्व को समझ सकेंगे। इसे अक्षुण बनाए रखने में योगदान करेंगे। इसके लिए भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद और उसकी पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई।
यूरोलॉजिस्ट डॉ. दिलीप मणि त्रिपाठी ने कहा कि देश की माटी के बारे में उसकी संतानों को जानना जरूरी है। इतिहास एक ऐसा विषय है जिसका हिस्सेदार पूरा समाज है। स्वतंत्रता संघर्ष के उन चमकते पहलुओं पर प्रकाश डालने के लिए निश्चायी भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, दिल्ली और सहयोगी की भूमिका में गोरखपुर विश्वविद्यालय बधाई के पात्र हैं।

rkpNavneet Mishra

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