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अंतर्राष्ट्रीय दासता उन्मूलन दिवस: मानव से लेकर मन तक- हर रूप की गुलामी से मुक्ति आवश्यक

✍️ नवनीत मिश्र

अंतर्राष्ट्रीय दासता उन्मूलन दिवस हमें यह याद दिलाता है कि दासता केवल इतिहास के पन्नों में कैद कोई पुरानी व्यवस्था नहीं है, बल्कि आज भी कई नए रूपों में हमारे बीच मौजूद है। समय बदला, समाज बदला, लेकिन गुलामी का स्वरूप बदलकर आदतों और मानसिकता में बस गया है। यही कारण है कि आज दासता की चर्चा केवल मानव की शारीरिक बंधन तक सीमित नहीं, बल्कि मानसिक दासता, विशेषकर नशे की लत पर भी उतनी ही गंभीरता से होनी चाहिए।
गुलामी सिर्फ इंसानों की नहीं होती, नशे की भी होती है। नशा इंसान के शरीर के साथ उसकी इच्छाशक्ति, सोच, निर्णय और भविष्य को भी कैद कर लेता है। यह ऐसी बेड़ी है जो दिखाई नहीं देती, पर भीतर से व्यक्ति को धीरे-धीरे खोखला कर देती है। जैसे पुराने समय में दासता मनुष्य की स्वतंत्रता छीन लेती थी, उसी तरह नशा मन और मस्तिष्क की स्वतंत्रता को बंधक बना लेता है। व्यक्ति यह मानने लगता है कि वह नशे के बिना जीवन नहीं जी सकता, और यहीं से शुरू होती है उसकी मानसिक गुलामी। नशे की लत व्यक्ति को सिर्फ शारीरिक रूप से ही नहीं, बल्कि भावनात्मक और सामाजिक रूप से भी कमजोर बनाती है। परिवार की खुशियाँ तनाव में बदल जाती हैं, आर्थिक स्थिति बिखरने लगती है, रिश्ते टूटते हैं और आत्मविश्वास धीरे-धीरे खत्म हो जाता है। नशा केवल एक को नहीं, पूरे परिवार को अपनी गिरफ्त में ले लेता है। समाज में अपराध, दुर्घटनाएँ, घरेलू हिंसा और अविश्वास जैसे कई दुष्परिणाम इसी मानसिक दासता के कारण बढ़ रहे हैं। यह आधुनिक युग का मौन संकट है, जिसका बोझ हर वर्ग और हर आयु पर दिखने लगा है।
इसलिए आज आवश्यकता है कि जब हम दासता उन्मूलन की बात करें, तो केवल इतिहास की बेड़ियों की नहीं, वर्तमान की अदृश्य बेड़ियों की ओर भी ध्यान दें। असली स्वतंत्रता वही है जब मनुष्य सिर्फ शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी स्वतंत्र हो। नशे से मुक्त होना एक व्यक्ति की निजी आवश्यकता ही नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक जिम्मेदारी भी है। जागरूकता, संवाद, उपचार, परिवार का सहयोग और समाज का सकारात्मक माहौल, ये सब मिलकर नशे की दासता को तोड़ सकते हैं।
इस दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम न केवल स्वयं नशे से मुक्त जीवन जिएँगे, बल्कि दूसरों को भी इस बंधन से बाहर आने में सहायता करेंगे। क्योंकि गुलामी किसी भी रूप में हो, शरीर की, मन की या आदतों की वह मनुष्य की गरिमा और स्वतंत्रता के खिलाफ है।
सच्ची आज़ादी वही है, जब शरीर और मन दोनों बंधनों से मुक्त हों।
नशे की दासता खत्म करना ही आत्मसम्मान और उज्ज्वल भविष्य की ओर पहला कदम है।

Karan Pandey

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