भारतीय संस्कृति केवल परंपरा और रीति-रिवाजों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह हमारी आत्मा, पहचान और सभ्यता की जड़ है। हजारों वर्षों से यह संस्कृति सहिष्णुता, करुणा, सत्य, अहिंसा और मानव कल्याण की मूलभूत धारा में बहती रही है। परंतु आज आधुनिकता की अंधी दौड़, पश्चिमी प्रभाव और स्वार्थ आधारित जीवनशैली इस संस्कृति पर कुठाराघात कर रही है। ऐसे समय में केवल चिंता करना पर्याप्त नहीं, बल्कि सक्रिय प्रयास और सुधार आवश्यक हैं।
आज की शिक्षा पद्धति बच्चों को रोजगारपरक बना रही है, पर संस्कृति से विमुख कर रही है। विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में भारतीय इतिहास, साहित्य, योग, आयुर्वेद, शास्त्रीय संगीत-नृत्य और संस्कृत भाषा को बढ़ावा देना होगा। यह नई पीढ़ी में आत्मगौरव और सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव पैदा करेगा।
संस्कारों का पहला पाठशाला परिवार है। यदि माता-पिता ही परंपराओं को त्याग देंगे तो बच्चे भी उनसे दूर हो जाएंगे। घर-परिवार में त्योहारों, परंपरागत लोककला, कथाओं और धार्मिक अनुष्ठानों को आत्मीयता से निभाना चाहिए।
आज फिल्मों, टीवी और सोशल मीडिया पर अश्लीलता, हिंसा और भ्रामक विचारधाराओं का प्रभाव बढ़ रहा है। यदि मीडिया सांस्कृतिक मूल्यों को सकारात्मक ढंग से प्रस्तुत करे तो समाज पर बड़ा असर पड़ेगा। लोककथाओं, पुराणों, संत साहित्य और भारतीय नायकों पर आधारित कार्यक्रम संस्कृति संरक्षण का साधन बन सकते हैं।
आधुनिकता और विकास का विरोध करना समाधान नहीं है। आवश्यकता है कि आर्थिक प्रगति और सांस्कृतिक परंपरा के बीच संतुलन स्थापित किया जाए। जैसे – योग को विश्व स्तर पर अपनाया गया, वैसे ही भारतीय हस्तकला, वस्त्र, खानपान और वास्तुकला को भी आधुनिक रूप देकर वैश्विक मंच पर स्थापित किया जा सकता है।
भारतीय संस्कृति की रक्षा का सबसे बड़ा दायित्व युवाओं पर है। यदि युवा सोशल मीडिया पर विदेशी ट्रेंड की बजाय भारतीय ज्ञान और गौरव का प्रचार-प्रसार करें, लोककला और साहित्य को डिजिटल माध्यम से आगे बढ़ाएं तो यह संस्कृति पुनः विश्वगुरु की राह पकड़ सकती है।
क्या संस्कृति के नाम पर नग्नता और अंधी होड़ जरूरी है?
आज के समय में अक्सर यह बहस उठती है कि विकसित बनने का अर्थ क्या है – क्या इसका मतलब केवल भौतिक प्रगति और फैशन की अंधी नकल है? क्या संस्कृति के नाम पर नग्नता परोसना या परंपराओं का मजाक उड़ाना ही आधुनिकता है? सच्चाई यह है कि सच्चा विकास वही है, जिसमें हम अपनी सभ्यता और धरोहर को बचाते हुए आगे बढ़ें। भारत को अपनी पहचान इसलिए मिली क्योंकि यह विज्ञान और अध्यात्म, आधुनिकता और परंपरा का अद्भुत संगम रहा है। यदि हम केवल बाहरी चमक-दमक में खोकर संस्कृति से विमुख हो जाएंगे, तो यह प्रगति नहीं बल्कि आत्मविनाश की राह होगी।
भारतीय संस्कृति पर हो रहा कुठाराघात केवल चिंता का विषय नहीं, बल्कि हमारी अस्मिता का प्रश्न है। यदि हम समय रहते सजग नहीं हुए तो आने वाली पीढ़ियां अपनी जड़ों से कट जाएंगी। सुधार का मार्ग है – शिक्षा में संस्कृति, परिवार में संस्कार, मीडिया में सकारात्मकता और युवाओं में जागरूकता।
याद रखना होगा कि संस्कृति को बचाना ही राष्ट्र को बचाना है।
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