February 5, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

हमारे हिंदू धर्म में रात में विवाह सनातन वैदिक प्रथा के विरुद्ध हैं

हिंदू सनातन वैदिक रीति रिवाजों को मानने वाले समस्त हिंदू समाज को आज यह सोचने की आवश्यकता है कि हिन्दू धर्म में सभी पवित्र कार्य दिन में तो विवाह रात में क्यों किया जाता है ? क्या इसके पीछे कोई सनातन धार्मिक मान्यता है या परिस्थिति जन्य अन्य कोई कारण है?
हिन्दु धर्म में रात में शुभकार्य करना अच्छा नहीं माना जाता है। हमारा हिन्दू समाज अनेक प्रकार की मान्यताओं से भरा है चाहे वह कोई शुभ कार्य हो या शादी विवाह। सबके अपने कायदे कानून व रिवाज बने हुए हैं ।
हमारे हिन्दू धर्म में शादी को एक बहुत ही पवित्र रिश्ता माना जाता है। विवाह= वि+वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ तो है विशेष रूप से वहन करना। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है, लेकिन हमारे हिन्दू धर्म में विवाह बहुत ही भली-भांति सोच- समझ कर किए जाने वाला संस्कार माना गया है।
इस संस्कार में वर और वधू सहित सभी पक्षों की सहमति लिए जाने की प्रथा है। शादी एक ऐसा मौका होता है जब दो इंसानो के साथ-साथ दो परिवारों का भी मिलन होता है। ऐसे में विवाह संबंधी सभी कार्य पूरी सावधानी और शुभ मुहूर्त देखकर ही किए जाते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूरी मानी जाती है।

शास्त्रों के अनुसार पार्वती, सावित्री सीता और द्रौपदी आदि के विवाह और स्वयंवर भी दिन में ही हुये थे ।

तो हमने आप ने यह सोचना है कि अब शादी हमेशा रात में ही क्यों होती है? जबकि हिन्दु धर्म में रात में शुभकार्य करना अच्छा नहीं माना जाता है। रात को देर तक जागना और सुबह को देर तक सोने को, राक्षसी प्रवृत्ति बताया जाता है। ऐसा करने से हमारे घर में लक्ष्मी नही आती है। केवल तंत्र सिद्धि करने वालों को ही रात्री में हवन यज्ञ की अनुमति है। वैसे भी प्राचीन समय से ही सनातन धर्म हिन्दू दिन के प्रकाश में ही शुभ कार्य करने के समर्थक रहे है तब हमारे हिन्दुओं में रात की विवाह की परम्परा कैसे पडी ?

तो आइये जानते है की विवाह रात में ही क्यों होता है । दरअसल पहले भारत में सभी उत्सव एवं संस्कार दिन में ही किये जाते थे परंतु मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत पर हमले करने के बाद ही हिन्दुओं को अपनी कई प्राचीन परम्पराएं बदलने पर विवश होना पडा था ।

त्रेता युग से लेकर मुगलों के आने तक के काल में भारत में सभी वर्गों व जातियों के विवाह दिन में ही हुआ करते थे किन्तु मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत पर हमले करने के बाद ही हिन्दुओं को अपनी कई प्राचीन परम्पराएं बदलने पर विवश होना पडा था । मुस्लिम आक्रमणकारी अत्यंत निम्न स्तर पर उतर आये और उन्होंने हिन्दू स्त्रियों व कन्याओं को निशाना बनाना प्रारम्भ कर दिया और जहाँ भी हिन्दू कन्या दिखाई देती वे उसका अपहरण कर लेते और जबरन इस्लाम कुबूल करवाते ।

तत्कालीन मुस्लिमों/ तूर्कों / मुगलों को ऐसा महसूस हुआ कि भारत में किसी महिला को मुसलमान बनाना बेहद आसान है क्योंकि अगर किसी हिंदू महिला को अपवित्र करो तो हिन्दू समाज अपनी रूढ़िवादी प्रथाओं के चलते उस महिला को त्याग देगा और ऐसी अधर्मता की शिकार और बलात्कार की शिकार महिला को हिन्दू धर्म उपेक्षा की दृष्टि से देखेगा और उसके बाद वह महिला थक हार कर इस्लाम ग्रहण कर लेगी ।

इसलिए मुस्लिम आक्रमणकारियों के आतंक से बचने के लिए हिन्दू परिवार अपनी धार्मिक रीति रिवाज छोड़कर रात के अँधेरे में विवाह करने लगे तब भी रात्रि में विवाह करते समय भी यह ध्यान रखा जाता था कि नाच -गाना, दावत, जयमाल, आदि भले ही रात्रि में हो जाए लेकिन वैदिक मन्त्रों के साथ सात फेरे ब्राह्म मुहूर्त में प्रातः पौ फटने के साथ ही सम्पन्न हों ।

इस ऐतिहासिक परिस्थिति जन्य विषमता को ध्यान में रखकर अब वह समय आ गया है कि हमारे हिंदू धर्म में सभी वर्गों को रात की विवाह पृथा का त्याग कर हमारी सनातन परंपरा को पुन: अपनाना चाहिये।
जिसके लिये निम्न सुझाव दे रहा हूँ और मेरा सभी आचार्यों व धर्म गुरुओं व सनातन हिंदू समाज से आग्रह है कि इस पर न केवल विचार करें बल्कि हमारी प्राचीन परम्परा को तुरंत अपनाने का बीड़ा उठायें:-

सुझाव इस प्रकार से हैं:-

विवाह दिन के शुभ मुहूर्त में किये जायँ और बिना किसी अनावश्यक तड़क भड़क के सम्पन्न किए जायँ।कोई प्री वैडिंग शूट नहीं हो, दुल्हन शादी में लहंगे की बजाय साड़ी पहने।

मैरिज लॉन में ऊलजुलूल अश्लील कानफोड़ू संगीत की बजाय, हल्का इंस्ट्रूमेंटल संगीत बजे।
वरमाला के समय केवल दूल्हा दुल्हन ही स्टेज पर रहें, वरमाला के समय दूल्हे या दुल्हन को उठाकर उचकाने वालों को रोका जाय।

पंडितजी द्वारा विवाह प्रक्रिया शुरू कर देने के बाद कोई अनावश्यक उन्हें रोके टोके नहीं।

कैमरामैन फेरों आदि के चित्र दूर से लें न कि बार बार विवाह सम्पन्न कराने वाले आचार्य को टोक कर बाधा पैदा करें।क्योंकि यह देवताओं का आह्वान करके उनके साक्ष्य में कराया जा रहा विवाह समारोह होता है, न कि किसी फिल्म की शूटिंग होती है।
दूल्हा व दुल्हन द्वारा कैमरामैन के कहने पर उल्टे सीधे पोज नहीं बनाये जायें।
विवाह समारोह दिन में हो और शाम तक विदाई संपन्न हो, जिससे किसी भी मेहमान को रात 12 से 1 बजे खाना खाने से होने वाली समस्या जैसे अनिद्रा, एसिडिटी आदि से परेशान न होना पड़े। इसके अतिरिक्त मेहमानों को अपने घर पहुंचने में मध्य रात्रि तक का समय न लगे और कोई असुविधा न हो।
नवविवाहित जोड़े को सबके सामने आलिंगन के लिए कहने वालों को तुरंत रोका जाय।
विवाह समारोह में किसी प्रकार का निरामिष भोजन व मदिरा वर्जित हों। विवाह में देवी देवताओं का आवाह्न किया जाता है, मांस मदिरा आदि देखकर देवी देवता रूष्ट होकर वर-वधू को बिना आशीर्वाद दिए चले जाते हैं।
सभी के लिए अनुकरणीय विवाह एक पवित्र बंधन होता है। मर्यादाओं में रहकर अपनी पुरानी सनातन वैदिक परंपरा ही सर्वश्रेष्ठ है, इसलिए ऐसे दिखावे व समाज विरोधी दहेज की पृथा से बचाव करने का समय आ गया है।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ