November 22, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

युद्ध-विभीषिका

युद्ध विभीषिका में जहाँ जवान सैनिक,
जिसे जानते नहीं उसे जान से मारते हैं,
वे न उनसे प्रेम करते, न घृणा करते हैं,
बस किसी का बर्बर आदेश मानते हैं।

ऐसे बर्बर आदेश देने वाले
उम्र दराज़ शासक होते हैं,
वे सारी दुनिया से निहित स्वार्थ
में दुश्मन बन घृणा करते हैं,
और सैनिकों को जान से मारने
का नृशंस आदेश देते हैं।

एक ताकतवर देश छोटे से पड़ोसी
को अपनी शर्तों पर चलाना चाहता है,
शर्तों के साथ ही युद्ध विराम करने
की बात की बात भी वही करता है।

उन्हें मानवता का आभाष नहीं है,
ऐसा कोई भी कह नहीं सकता है,
निर्दोष सैनिकों को ही नहीं,नागरिकों
व विदेशियों को भी मरवा सकता है।

दुनिया के भविष्य छात्र, आजीविका
अर्जन के लिए दूर देश के उद्यमी एवं
उस देश में फँसे निर्दोष विदेशी लोगों
की भी आक्रांता परवाह नहीं करता है।

कई ताकतवर देश या देशों के समूह
कमजोर छोटे सीमांत देशी को इसी
स्वार्थ में अपने साथ रखना चाहते हैं,
और अपने स्वार्थ में दबाव बनाते हैं।

सारे वैश्विक नियम क़ानून व क़ायदे
ऐसी ताकतवर महाशक्तियाँ भूलकर
अपनी अपनी शर्तों पर सम्पूर्ण जगत
को युगों तक बंधक बनाये रखते हैं।

विश्व बंधुत्व का सिद्धांत उनकी
ताक़त को स्वीकार नहीं होता है,
मानव मानवता का दुश्मन बनकर,
मानवता के विनाश को तत्पर होता है।

विज्ञान व तकनीकी विकास विश्व
संस्कृति के विनाश को आज उद्यत है,
धर्म संस्कृति व सामाजिक ताना बाना,
‘आदित्य’ युद्ध विभीषिका में दिशाहीन है।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’