July 8, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

इंद्रियों के दमन की लीला ही गोवर्धनलीला- राघव ऋषि

देवरिया (राष्ट्र की परम्परा)

ऋषि सेवा समिति, देवरिया के तत्वाधान में पुरवा स्थित निर्माणाधीन श्रीमहालक्ष्मी मंदिर परिसर में आयोजित भागवत कथा के पंचम दिवस अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक पूज्य राघव ऋषि का सविधि पूजन सहायक यजमान शत्रुघ्न अग्रवाल द्वारा सपरिवार किया गया । पूज्य राघव ऋषि ने कथा का प्रारम्भ नंदोत्सव से किया। इस अवसर पर वैदिक मंत्रों द्वारा बालकृष्ण का अभिवादन किया गया। कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मनुष्य जन्म सभी को आनन्द देने के लिए है। शरीर को मथुरा और हृदय को गोकुल यदि नन्दरूपी जीव बनता है तो प्रभु की कृपा प्राप्त होती है। भगवान ने बालीला में सबसे पहले पूतना का वध किया। पूत+ना अर्थात जो पवित्र नहीं है वो है पूतना। अज्ञान पवित्र नहीं है। संसार में रहते हुए समस्त ज्ञान प्राप्त किया परन्तु भगवान का ज्ञान नहीं है तो उसका जीवन अपवित्र हैं जिसकी आकृति सुन्दर हैं एवं कृति बुरी है, वही पूतना है।शरीर बहार से तो सुन्दर है किन्तु हृदय विष से भरा हुआ है वही पूतना है। जीव तर्क कुतर्क करके भगवान पर कटाक्षेप करता है फिर भी प्रभु उस पर कृपा कर सदगति देते है। पूज्य ऋषि जी के एकमात्र सुपुत्र सौरभ ऋषि ने ”ज़री की पगड़ी बाँधे” से बालकृष्ण की भजन के माध्यम से पूरी झाँखी खीची तो सभी हर्षातिरेक हो गए। माखनचोरी लीला का वर्णन करते हुए राधव ऋषि ने बताया कि पवित्र मन ही माखन है जिसका मन पवित्र होता है भगवान उसी के घर पधारकर उसके हृदय को चुरा लेते है। गोपियाँ तल्लीन होकर घर-गृहस्थी के कार्य करते हुए भगवान के लिए माखन विलोडती है। कथास्थल पर माखन की हांडी भगवान ने फोड़कर को प्रसाद बांटा।यशोदा अर्थात यश:ददाति इति सा यशोदा। जो दूसरों को यश दे भगवान उसी के गोद में रहतें है। मन पूर्णत: वासनाहीन होने पर ईश्वर का साथ जा मिलता है।
कौशिकी संहिता में कथा आती है कि भगवान शिव ही बाँसुरी के रूप में आए। रामावतार में हनुमान जी ने चरणों की सेवा की तो कृष्णावतार में वंशी के रूप में शिव की सेवा की। अघासुर अजगर का रूप लेकर आया और गोपाल को निगलने लगा।अघ अर्थात पाप।पाप को भगवान ही मारते है। भगवान की लीला में ब्रह्मा जी को मोह हुआ तो भगवान ने उस मोह को भंग किया।
बाललीला का वर्णन करते हुए यशोदा के स्नेहपूरित वात्सल्य की व्याख्या करते हुए पूज्य राघव ऋषि ने कहा की यशोदा जी दधिमंथन कर रही है। मुख पर पसीने की बूंदें झलक रही है। भगवान की सेवा समय उनका नाम मुख से उच्चारण हो, मन से स्मरण, और सेवा के श्रम से पसीने से सारा शरीर भींग जाए। ठाकुर जी की सेवा में न लगने वाला शरीर व्यर्थ है। सेवा करते-करते आँखें गीली हों और हृदय पिघल जाना चाहिए। जबतक व्यवहार पूर्णत: शुद्ध नहीं होगा तबतक भक्ति भलीभाँति नहीं हों पाएगी | दधिमंथन करते समय यशोदा के तन,मन, वचन एक हों गए थे।ब्रज में एक मलिन फूल-फल बेचने आई भगवान ने उससे फल मांगे उसकी टोकरी रत्नों से भर गई | जो व्यक्ति अपने सत्कर्म – रूपी फल भगवान को अर्पित करते है उसके जीवन-टोकरी को भगवान सुख सुविधा के रत्नों से भर देते है।

भक्ति और कर्म
भक्ति और कर्म में वैसे कोई अन्तर नहीं है। प्रभु को प्रसन्न करने के लिए किया गया कर्म ही भक्ति है। जो कोई प्रत्येक कर्म ईश्वर के लिए करता है उसके वो सारे कर्म भगवान के लिए भक्ति बन जाता है। कर्म करते समय मन ईश्वर में संलग्न रहे तो प्रत्येक क्रिया भक्ति बन जाती है। ईश्वर द्वारा दी गई स्थिति में आनन्द और सन्तोष मानों कर्म के फल की इच्छा न रखो। कर्म का कैसा, कितना, कब फल दिया जाए, वो भगवान की सोचने की बात है |
गोवर्धन लीला की मार्मिक व्याख्या करते हुए राधव ऋषि ने कहा की गो का अर्थ है भक्ति। भक्ति को बढ़ाने वाली लीला ही गोवर्धन लीला है ‘। जीव का घर भोग भूमि है अत: भक्ति बढ़ाने के लिए थोड़े समय किसी पवित्र स्थान में रहकर साधना करनी चाहिए।भगवान ने सभी व्रजवासियों से महालक्ष्मी का पूजन कराया जो दीपावली के सम्पन्न हुआ। सारे व्रजवासियों ने भेंट व खाद्य सामग्री गोवर्धन जी के लिए लाई। कन्हैया स्वयं पूजन करा रहा है। गोवर्धन जी का अभिषेक, श्रृंगार व छप्पन प्रकार के भोग अर्पण किया गया। इस अवसर पर जनसामान्य ने भी भगवान को नैवेद्य अर्पण किया। गोवर्धनलीला के समय कन्हैया सात वर्ष का था। सौरभ ऋषि ने
“श्री गोवर्धन महाराज” भजन गाया तो समस्त श्रोतागण अपने स्थान से उठकर नृत्य करने लगे। पूरा वातावरण भक्तिमय बना गया ।व्रजवासियों की रक्षा भगवान ने गोवर्धननाथ जी को धारण कर लिया {गिरिराज धरण की जय} से पूरा पंडाल गुंजायमान हो गया ।इन्द्र ने भगवान का दूध से अभिषेक किया जिसे ‘सुरभिकुण्ड’ में एकत्रित किया गया
कथा के अंत में मोतीलाल कुशवाह, धर्मेन्द्र जायसवाल, नन्दलाल गुप्ता, उपेंद्र तिवारी, अश्वनी यादव, हृदयानंद मिश्र, शैलेष त्रिपाठी, कृष्णमुरारी, अशोक गुप्ता, जितेंद्र गौड़, राजेंद्र मद्धेशिया, कामेश्वर कश्यप, राधामोहन तिवारी, रामसेवक गौड़, अशोक श्रीवास्तव, अशोक कनोजिया, पीयूष तिवारी, सहित अनेक गणमान्य भक्तों ने प्रभु की भव्य आरती की।
कोषाध्यक्ष भरत अग्रवाल ने बताया कि रविवार, 11 फरवरी को श्रीरुक्मिणी सहित भगवान श्रीकृष्ण का विवाह उत्सव की कथा एवं झांकी रहेगी। इस शुभ अवसर पर श्रीकृष्ण बारात भी क्षेत्रवासियों द्वारा निकाली जाएगी।