खामोशी से सभी काम होते हैं,
किसान खेत में काम करते हैं,
जैसे पेंड़ और पौधे छाया देते हैं,
किसान हम सबको अनाज देते हैं।
अन्नदाता माना जाता है किसान,
निस्वार्थ परिश्रम करता है किसान,
सारा जग उसका शोषण करता है,
उसकी उपज पर लाभ कमाता है।
पेड़ों की लकड़ी से मकान बनते है,
सावन में पेंड़ों पर झूले भी पड़ते हैं,
पशु पक्षियों को चारा भी देते हैं,
परिंदों को रहने की जगह देते हैं।
छाँव तो छाते से भी मिल जाती है,
छाँव छानी छप्पर से मिल जाती है,
पर किसान की परिश्रमी काया तो
समस्त संसार की भूख मिटाती है।
खेतों को पानी और खाद देना इस
महँगाई में बहुत मुश्किल होता है,
उपज की क़ीमत भी नहीं है मिलती,
हर कोई ख़रीदना चाहता है सस्ती।
ऐसे ही किसान का शोषण होता है,
वह खेती के लिये क़र्ज़दार होता है,
उसकी कर्ज़ अदायगी हो नहीं पाती,
कर्ज देने वाले से है धमकी मिलती।
अरमान अधूरे रह जाते किसान के,
बच्चे भूखे नंगे रहते हैं किसान के,
सरकारें कर्ज माफ़ी की बातें करतीं,
और बिचौलियों की जेबें हैं भरतीं।
हज़ारों लाखों ने फाँसी लगा ली,
कर्ज के बोझ से अपनी जानें दे दी,
आंदोलन कारियों ने स्वार्थ साधा,
किसान व सरकार दोनों को साधा।
आज खेती करना कोई नहीं चाहता,
पर भरपेट भोजन हर कोई चाहता है,
आदित्य मेहनत कोई नहीं करता है,
आराम से रहना हर कोई चाहता है।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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