
सिकन्दरपुर,/बलिया(राष्ट्र की परम्परा)
यदि सच्चिदानन्द शिव परमात्मा से सच्चा सम्बन्ध जुड़ जाय तो इससे बड़ी बात क्या होगी किन्तु यह सौभाग्य सन्त-सद्गुरु की कृपा से ही सम्भव है। भक्तिभूमि वृन्दावन की सुषमा देख कन्हैया ने मैया से कहा- कल से मैं ही गौएँ चराऊँगा। गो चारण में बगुला बनकर आये वकासुर की चोंच पकड़ कन्हैया ने उसे मार डाला। अजगर बने अघासुर के खोह जैसे मुँह में प्रविष्ट हो उसे भी मार डाला। सखाओं संग कलेवा करते कन्हैया एक दूसरे के मुख में जिला खा रहे थे कि विमोहित ब्रह्मा मौका पाकर बछुड़े चुरा लिये। कृष्ण जब गौओं को धिराने गये तो सखा-वृन्द को भी चुरा लिये। कृष्ण ने अपनी विभूति से बछड़ों और सखाओं को यथावत् बना दिया। साल भर बाद ब्रह्मा ने सब लौटाकर कृष्ण से क्षमा माँगी। ये बातें स्वामी रामदास ने कहीं, वे १०८, कुण्डीय कोटि होमात्मक राजसूय महायज्ञ में व्यासपीठ से श्रध्दालुओं को सम्बोधित कर रहे थे। महायज्ञ का आयोजन हाँ-बिहरा (डुहाँ) में आगामी १८ जनवरी २०२५ तक चलेगा। कहा कि विषाक्त हो चुके यमुनाजल में गिरी गेंद लाने के बहाने उससे कूदकर काली नाग के सारे फन तोड़कर कन्हैया ने नागपत्नियों की प्रार्थना पर तुन्हें रमणक द्वीप में रहने हेतु स्थान दे दिया। उन्होंने इन्द्र की वार्षिक पूजा रुकवाकर गिरिराज की पूजा करायी तब कुपित इन्द्र ने सौवर्तक मेघों को आदेशित कर प्रजमें प्रलय – कालीन वर्षा करायी किन्तु कृष्ण ने गोवर्धन धारण कर व्रजवासियों की रक्षा की। यह कथा चल ही रही थी कि यज्ञस्थल पर शनैः शनैः वर्षा शुरु हो गयी लोगों की व्याकुलता देख वक्ता ने कहा- प्रभुकृपा होगी और वर्षा थमेगी। उन्होंने गोवर्धन- धारण की लीला कथा में वषर्षा का होना शुभ का लक्षण बताया। धीरे-धीरे वापी थमी और सब कुछ अनुकूल हो गया।
मधुवन में चीरहरण के समय गोपियों को दिये वचन के अनुसार कृष्ण ने रात्रि को वंशी बजायी । बंशी ध्वनि सुन गोपियाँ जो जहाँ थीं वहीं से दौड़ पड़ीं। कृष्ण बोले- स्वागतं महाभागा ! और तत्काल पूछा, वहाँ उनके आने का कारण। गोपियों बोलीं- आपने हमें बुलाया है, हम आपके चरणों की दासी है। आपको इस उपदेश का अधिकार किसने दिया, घर जाकर हम क्या करेंगी कृिष्ण निरुत्तरं थे। फिर तो महारास शुरू हुई किन्तु गोपियों को अपने रूप- सौन्दर्य का अभिमान हो गया, तब कृष्ण अदृश्य हो गये। कृष्ण-वियोग में वन-वन भटकती, लता-गुल्मों से पूछती, बावली बनी गोपियाँ मीनवत् छटपटाने लगीं जैसे किसी की मणि चुरा ली गयी हो। ये प्रेमायु बहाती क्षमा माँगीं, कृष्ण लीला का अभिनय करों, तब कृष्ण प्रकट हुए। प्रत्येक गोपी के साथ एक कृषण, इस भाँति योगमाया के ब्रह्माण्ड में महारास पूरी हुई। संसारीजन इससे बेखबर रहे।
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