श्रद्धा-विश्वास से जन्मा पुरुषार्थ, रावणत्व के अंत के लिए हुआ श्रीराम का अवतार - राष्ट्र की परम्परा
August 19, 2025

राष्ट्र की परम्परा

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श्रद्धा-विश्वास से जन्मा पुरुषार्थ, रावणत्व के अंत के लिए हुआ श्रीराम का अवतार

बिहार (राष्ट्र की परम्परा )गोपालगंज प्रखंड के सिसई उत्तर टोला स्थित नव निर्मित हनुमान मंदिर परिसर में चल रहे नौ दिवसीय रुद्र महायज्ञ एवं श्रीरामचरितमानस कथा व्यास पुंडरीक महाराज ने शिव-पार्वती संवाद के माध्यम से भगवान श्रीराम के अवतार के गूढ़ रहस्यों को उद्घाटित किया। कथा की शुरुआत श्रद्धा (पार्वती) और विश्वास (शिव) के मिलन से हुई जिसके परिणामस्वरूप पुरुषार्थ (कार्तिकेय) और विवेक (गणेश) का जन्म हुआ।
कथावाचक ने कहा कि यही पुरुषार्थ अंधी श्रद्धा रूपी तारकासुर का अंत करता है। नकली धर्म और समाज में फैलती कुरीतियों को समाप्त करने के लिए विवेक और पुरुषार्थ जरूरी है।
कथा के दौरान पार्वती जी ने भगवान शिव से श्रीराम के अवतरण से संबंधित 14 प्रश्न किए।इसके उत्तर में भगवान शिव ने कहा कि भगवान के अवतार के कई कारण हैं । लेकिन रामचरितमानस में पांच प्रमुख कारण बताए गए हैं । जिसमें जय-विजय का श्राप, जलंधर वध हेतु रावण का जन्म, नारद का श्राप, मनु-शतरूपा की तपस्या, राजा प्रताप भानु की अधर्मिकता, जो मानस का रावण है।कथावाचक ने बताया कि रावण ने मानव निर्माण की व्यवस्था यज्ञ, कथा, धर्म और पूजा को नष्ट कर दिया था। उसका उद्देश्य था मानव को पशु बना देना। रावणत्व के इस प्रभाव से मुक्ति हेतु पृथ्वी भगवान विष्णु की शरण में गई और भगवान ने वचन दिया कि वे मनुष्य रूप में अयोध्या में राजा दशरथ के घर जन्म लेंगे।कथा के माध्यम से भगवान के अवतार के तीन उद्देश्य भी पुंडरीक महाराज के द्वारा बताए गए अपने प्रेममय लीलाओं के द्वारा मुनियों को भक्ति में लगाना।
भक्तों को दास्य, साख्य, वात्सल्य व श्रृंगार भाव में जोड़कर आनंदित करना,धरती को दैत्यों के भार से मुक्त करना ।
कथावाचक ने कहा कि जो समाज को रुला दे। वही रावण है, और जो उस रावणत्व का अंत करे, वही राम है ।कथा का उद्देश्य समाज में रामत्व की स्थापना और रावणत्व का उन्मूलन है। इस अवसर पर यज्ञाचार्य पं. वीरेंद्र शुक्ल के निर्देशन में वैदिक रीति से अनुष्ठान संपन्न हुआ। मंच पर महंत वैदेही महाराज (अयोध्या), संत विश्वंभर दास , विद्याभूषण मिश्र (यज्ञाध्यक्ष), बड़े ओझा (पूर्व मुखिया पति), धनंजय मिश्र (मुख्य यजमान), कृष्णानंद ओझा शशि कांत मिश्रा महाराज नागेंद्र मिश्रा गौरव मिश्र ध्रुवदेव उपाध्याय, डबलू तिवारी, दीपराज तिवारी, देवकांत मिश्र, , त्रिभुवन मिश्र, शिवमुरारी ओझा, सूर्यनाथ ओझा, शत्रुध्न मिश्र, रमाशंकर प्रसाद, पं. हृदयानंद मिश्र, सच्चिदानंद मिश्र, केशव मिश्र समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।