
दीवाली का हम सब इंतज़ार करते हैं,
प्रथम पूज्य श्रीगणेश की पूजा कर,
माता श्री लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं,
श्रद्धापूर्वक दीवाली का पर्व मनाते हैं।
त्रेता में सीता जी को लेकर श्रीराम,
लक्ष्मण दीवाली के दिन वनवास से
चौदह वर्षों बाद राक्षस रावण का
संहार कर अयोध्या वापस आये थे।
अवधपुरी नगरी के घर- द्वार और
कोना कोना दीपज्योति से जगमग
कर उनके सम्मान व स्वागत में उस
रात को दिन की भाँति सजाये थे।
श्रीराम विष्णु अवतारी थे, तो माता
सीता श्रीलक्ष्मी जी की अवतारी थीं,
श्री गणेश माता लक्ष्मी के धर्मपुत्र थे
वे तीनों लोकों में प्रथम पूज्य भी थे।
माता लक्ष्मी धन वैभव की देवी हैं,
गणेश रिद्धि सिद्धि बुद्धि के स्वामी,
लक्ष्मी की इच्छा से गणेश के साथ
दोनो की पूजा का वृत है दीवाली।
दीपावली की रात माँ लक्ष्मी
श्रीगणेश भी भेंट हमें लाते हैं,
दोनो आते हैं दीवाली के दिन
हर घर शुभाषीश दे जाते हैं।
बच्चे बूढ़े सबको दीवाली के दिन
लक्ष्मी गणेश का रहता है इंतज़ार,
लक्ष्मी गणेश के दीपक घर में उनके
स्वागत में उस रात जलाये जाते हैं।
लक्ष्मी और गणेश के सोने चाँदी के
सिक्के दीपक के साथ पवित्र पात्र में
रखकर उनके आने की मनो कामना
से दीवाली की रात जगाये जाते हैं।
दीवाली में माता लक्ष्मी, श्रीगणेश
हर घर में चुपके चुपके ही आएँगे,
सब बच्चों और सभी बड़ों को भी
सुंदर उपहार छुप छुप कर दे जाएँगे।
खील, मिठाई, रुपया-पैसा सब
उनके आशीर्वाद से ही मिलता है,
आदित्य होता है उनका इंतज़ार
दीवाली की रात उपहार मिलता है।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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